Israeli की सरकार ने Attorney General Gali Baharav-Miara के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव पास कर दिया, जिससे उन्हें हटाने की प्रक्रिया शुरू हो गई है। Israeli के इतिहास में अब तक किसी अटॉर्नी जनरल को बर्खास्त नहीं किया गया है, जिससे यह फैसला बेहद अहम बन गया है।
Prime Minister Benjamin Netanyahu इस बैठक में शामिल नहीं हो सके, क्योंकि उनके भ्रष्टाचार मामले के कारण हितों का टकराव था। बैठक की अध्यक्षता न्याय मंत्री यारीव लेविन ने की। Baharv-Miara ने इस बैठक का बहिष्कार किया और इसकी निंदा करते हुए एक कड़ा पत्र भेजा। उन्होंने आरोप लगाया कि सरकार न्यायपालिका को कमजोर करने और पूरी सत्ता अपने हाथ में लेने की कोशिश कर रही है।
सरकार ने Baharv-Miara पर “अयोग्य व्यवहार” और “गंभीर मतभेद” का आरोप लगाया, जिससे सुचारू शासन में बाधा आ रही थी। लेकिन विपक्ष ने इस कदम को राजनीतिक और अलोकतांत्रिक करार दिया। लेविन ने Attorney General पर हमला करते हुए कहा कि वह संविधान समिति में नहीं आतीं, मंत्रियों के अनुरोधों को नजरअंदाज करती हैं और पूरी तरह से सहयोग करने से इनकार करती हैं।
इस बर्खास्तगी प्रक्रिया में लगभग दो महीने लग सकते हैं। पहले, चयन समिति से परामर्श किया जाएगा जिसने उन्हें नियुक्त किया था। फिर Baharv-Miara को खुद को बचाने का मौका मिलेगा। हालांकि, अंतिम फैसला सरकार के हाथ में ही रहेगा।
इस बीच, चयन समिति में दो सीटें खाली हैं, जिन्हें पहले भरा जाना जरूरी होगा। माना जा रहा है कि कनेसट अध्यक्ष आमिर ओहाना और पूर्व न्याय मंत्री Gideon सार इस समिति में शामिल होंगे। विपक्षी दलों ने चेतावनी दी है कि वे इस बर्खास्तगी को हाईकोर्ट में चुनौती देंगे।
विपक्ष के नेता Yair Lapid ने आरोप लगाया कि, “पहले नेतन्याहू ने अपने जांचकर्ताओं को हटाने की कोशिश की, अब वह अपने अभियोजक को बर्खास्त करना चाहते हैं। यह अवैध और भ्रष्ट कदम है!”
Baharv-Miara को 2022 में नियुक्त किया गया था और वह इस पद पर पहुंचने वाली पहली महिला हैं। उन्हें Gideon सार ने नामित किया था, लेकिन अब वह भी उनके खिलाफ हो गए हैं।
सरकार ने Israeli सुरक्षा एजेंसी (शिन बेट) के निदेशक रोनेन बार को भी बर्खास्त करने का फैसला किया, लेकिन हाईकोर्ट ने इस फैसले पर अस्थायी रोक लगा दी। यह एजेंसी Israeli की आंतरिक सुरक्षा, आतंकवाद विरोधी अभियानों और साइबर सुरक्षा के लिए जिम्मेदार है।
Israel के इतिहास में यह सबसे बड़ा संवैधानिक संघर्ष बनता दिख रहा है। क्या सरकार अपने फैसले पर कायम रहेगी या हाईकोर्ट इस बर्खास्तगी को रोक देगा? सियासी भूचाल अभी बाकी है!