समाजवादी पार्टी के वरिष्ठ नेता और फिलहाल जेल में बंद आज़म खान की कानूनी लड़ाई एक अहम मोड़ पर पहुंच गई है। रामपुर के बहुचर्चित डूंगरपुर प्रकरण में एमपी-एमएलए कोर्ट द्वारा सुनाई गई 10 साल की सजा के खिलाफ दायर अपील पर इलाहाबाद हाईकोर्ट में सुनवाई पूरी हो गई है। मंगलवार को जस्टिस समीर जैन की सिंगल बेंच ने दोनों पक्षों की दलीलें सुनने के बाद फैसला सुरक्षित रख लिया।
गौरतलब है कि 30 मई 2024 को रामपुर एमपी-एमएलए कोर्ट ने आज़म खान को 10 साल की सजा और मामले के सह-आरोपी ठेकेदार बरकत अली को 7 साल की सजा सुनाई थी। कोर्ट ने इस मामले में गंभीर धाराओं के तहत दोषी ठहराया था। सजा के खिलाफ दोनों ने इलाहाबाद हाईकोर्ट में क्रिमिनल अपील दायर की, जिस पर अब फैसला आना बाकी है।
मामला अगस्त 2019 में दर्ज किए गए एक आपराधिक मुकदमे से जुड़ा है। शिकायतकर्ता अबरार के अनुसार, दिसंबर 2016 में आज़म खान, रिटायर्ड सीओ आले हसन खान और ठेकेदार बरकत अली ने उसके साथ मारपीट की, उसके घर में तोड़फोड़ की और जान से मारने की धमकी दी। आरोप यह भी था कि उसके मकान को पूरी तरह गिरा दिया गया।
2019 में अबरार ने रामपुर के थाना गंज में इन तीनों के खिलाफ मामला दर्ज कराया। पुलिस जांच के बाद यह मामला एमपी-एमएलए विशेष कोर्ट में चला, जहां अदालत ने आज़म खान और बरकत अली को दोषी मानते हुए क्रमशः 10 और 7 साल की सजा सुनाई।
इलाहाबाद हाईकोर्ट में सुनवाई के दौरान बचाव पक्ष ने तर्क दिया कि मामला राजनीतिक साजिश का हिस्सा है और आरोपों को साबित करने के लिए पर्याप्त सबूत नहीं हैं। वहीं, अभियोजन पक्ष ने एमपी-एमएलए कोर्ट के फैसले का समर्थन करते हुए कहा कि शिकायतकर्ता के बयान और सबूत घटनाओं को स्पष्ट रूप से साबित करते हैं।
अब फैसला सुरक्षित रखे जाने के बाद सभी की निगाहें हाईकोर्ट के आदेश पर टिकी हैं। यह फैसला न सिर्फ आज़म खान के राजनीतिक भविष्य पर असर डालेगा, बल्कि उत्तर प्रदेश की सियासत में भी बड़ा बदलाव ला सकता है।