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Tuesday, June 17, 2025

वैश्विक और घरेलू चुनौतियों के बीच विदेशी निवेशकों ने जनवरी में भारतीय शेयर बाजार से 44,396 करोड़ रुपये निकाले

विदेशी निवेशकों ने जनवरी में भारतीय शेयरों से 44,396 करोड़ रुपये निकाले, वैश्विक कारकों से प्रभावित।

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जनवरी 2024 में विदेशी निवेशकों ने भारतीय शेयर बाजार से 44,396 करोड़ रुपये का भारी निकासी की, जो वैश्विक और घरेलू संकटों के कारण निवेशकों के मनोबल में बदलाव को दर्शाता है। यह निकासी दिसंबर में 15,446 करोड़ रुपये के निवेश के बाद आई है, जब विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों (FPI) ने भारतीय शेयरों में निवेश किया था।

निकासी के पीछे के कारण

विदेशी पूंजी निकासी के कई कारण हैं, जिनमें अमेरिकी डॉलर की मजबूती, बढ़ती अमेरिकी बॉन्ड यील्ड और भारत के कमज़ोर मुनाफा सीजन की उम्मीद प्रमुख हैं। Morningstar Investment Advisers India के एसोसिएट डायरेक्टर हिमांशु श्रीवास्तव के अनुसार, भारतीय रुपया लगातार depreciate हो रहा है, जिससे विदेशी निवेशकों पर दबाव बढ़ रहा है और वे भारतीय शेयर बाजार से अपने पैसे निकाल रहे हैं।

भारतीय रुपया अमेरिकी डॉलर के मुकाबले कमजोर हो गया है, जिससे विदेशी निवेशकों के लिए भारतीय संपत्तियां महंगी हो रही हैं। इसके अलावा, अमेरिकी बॉन्ड यील्ड्स में वृद्धि, जो अब 4.6% से ऊपर हैं, ने अमेरिकी संपत्तियों को अधिक आकर्षक बना दिया है, जिससे विकासशील बाजारों, विशेषकर भारत से पूंजी निकासी हो रही है।

Geojit Financial Services के मुख्य निवेश रणनीतिकार, वी के विजयकुमार ने कहा कि डॉलर इंडेक्स 109 से ऊपर और अमेरिकी बॉन्ड यील्ड्स के उच्च रिटर्न को देखते हुए यह स्वाभाविक है कि FPI अब उभरते बाजारों, खासकर भारत से पूंजी निकाल रहे हैं, क्योंकि भारत में शेयर बाजार की वैल्यूएशन बहुत उच्च है।

व्यापक आर्थिक परिप्रेक्ष्य

मार्केट सेंटीमेंट को भी भारत में मुनाफे के सीजन में कमजोरी की उम्मीदों से नुकसान हो रहा है। विश्लेषकों का अनुमान है कि मौजूदा तिमाही में कंपनियों के मुनाफे में मंदी हो सकती है, जो निवेशकों के आत्मविश्वास को और कम कर रहा है। हालांकि भारतीय शेयर बाजार में हाल की गिरावट के बावजूद वैल्यूएशन अभी भी ऊंची बनी हुई है, जिससे भारतीय शेयरों की तुलना में अन्य उभरते बाजारों में निवेश करना विदेशी निवेशकों के लिए कम आकर्षक हो रहा है।

इसके अलावा, भारत की आर्थिक रिकवरी की गति को लेकर अनिश्चितताएं भी बढ़ी हैं। जबकि भारत एक तेज़ी से बढ़ने वाली प्रमुख अर्थव्यवस्था बना हुआ है, निवेशक इस वृद्धि की स्थिरता को लेकर सतर्क हैं, खासकर वैश्विक जोखिमों जैसे महंगाई और भू-राजनीतिक तनावों के चलते। घरेलू वित्तीय स्थिति भी एक चिंता का विषय है, क्योंकि विशेषज्ञों का कहना है कि बढ़ती महंगाई और ब्याज दरों के कारण आर्थिक विकास और कंपनियों के मुनाफे पर नकारात्मक असर हो सकता है।

कर्ज बाजार से भी निकासी

विदेशी निवेशक केवल शेयर बाजार से ही नहीं, बल्कि कर्ज बाजार से भी पैसे निकाल रहे हैं। FPI ने कर्ज सामान्य सीमा से 4,848 करोड़ रुपये और कर्ज स्वैच्छिक रिटेंशन मार्ग से 6,176 करोड़ रुपये निकाले हैं। अमेरिकी बॉन्ड्स की बढ़ती आकर्षकता ने विदेशी निवेशकों को भारतीय कर्ज उपकरणों से बाहर जाने के लिए प्रेरित किया है।

2023 vs 2024: विपरीत प्रवृत्तियाँ

जनवरी में हुई भारी निकासी 2023 के मजबूत प्रवृत्तियों के विपरीत है, जब विदेशी निवेशकों ने भारतीय शेयरों में 1.71 लाख करोड़ रुपये का निवेश किया था, जो भारत की मजबूत आर्थिक आधार, घरेलू खपत में लचीलापन और सरकार द्वारा बुनियादी ढांचा परियोजनाओं पर खर्च की उम्मीदों के कारण हुआ था। इसके विपरीत, 2024 की शुरुआत में विदेशी निवेशक अधिक सतर्क नजर आ रहे हैं, और भारतीय शेयर बाजार में नेट निवेश केवल 427 करोड़ रुपये रहा है।

2022 में भारत के शेयर बाजार के लिए एक कठिन वर्ष था, क्योंकि FPI ने 1.21 लाख करोड़ रुपये की निकासी की थी, जो वैश्विक केंद्रीय बैंकों द्वारा दरों में वृद्धि के कारण हुई थी। हालांकि, 2023 में मजबूत प्रवृत्तियों ने भारत के आर्थिक परिप्रेक्ष्य को लेकर सकारात्मक उम्मीदें बढ़ाईं, और कई ने उम्मीद जताई थी कि यह प्रवृत्ति 2024 में जारी रहेगी।

भविष्य के लिए दृष्टिकोण

हालांकि 2024 की शुरुआत में विदेशी निवेशकों द्वारा सतर्क दृष्टिकोण अपनाया गया है, विशेषज्ञों का मानना ​​है कि स्थिति में सुधार हो सकता है। Waterfield Advisors के सीनियर डायरेक्टर विपुल भावर ने कहा कि कॉर्पोरेट मुनाफे में चक्रीय सुधार, मजबूत GDP वृद्धि, घरेलू खपत में लचीलापन, और बुनियादी ढांचे पर सरकारी खर्च में वृद्धि FPI के प्रवाह को फिर से भारत में ला सकती है। यदि ये कारक सही साबित होते हैं, तो साल के दूसरे हिस्से में FPI प्रवाह में सुधार हो सकता है।

कुल मिलाकर, मौजूदा निकासी भारतीय बाजारों के लिए अनिश्चितता का संकेत देती है, क्योंकि अमेरिकी बॉन्ड यील्ड्स में वृद्धि और डॉलर की मजबूती वैश्विक कारकों के रूप में काम कर रहे हैं, जिनके साथ घरेलू चुनौतियां भी हैं। हालांकि, भारत की दीर्घकालिक विकास कहानी बनी हुई है, और कई विश्लेषक आशान्वित हैं कि जैसे-जैसे साल आगे बढ़ेगा, स्थिति सुधर सकती है।

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