2024 के आम चुनाव ने देश की कई प्रमुख राजनीतिक पार्टियों के अस्तित्व को संकट में डाल दिया है। इनमें से कुछ पार्टियां जो पहले सत्ता का हिस्सा रही थीं, अब उनके लिए आने वाले दिनों में कई संकट खड़े हो गए हैं। इनमें से दो पार्टियों को कार्यालय तक गंवाने का सामना करना पड़ रहा है, जबकि एक पार्टी को राष्ट्रीय दर्जा खोने का खतरा है। इसके अलावा, एक पार्टी टूटने की कगार पर है।
मायावती की पार्टी पर संकट
बीएसपी (बहुजन समाज पार्टी) को 2024 के लोकसभा चुनाव में शून्य सीटें मिलने का खतरा है। 2019 में पार्टी ने 10 सीटों पर जीत हासिल की थी, लेकिन अब उसकी स्थिति बहुत कमजोर हो गई है। राज्यों में भी बीएसपी का प्रदर्शन निराशाजनक रहा है। 2022 के यूपी और पंजाब चुनावों में हार के बाद पार्टी ने कई फेरबदल किए, लेकिन 2023 के मध्य प्रदेश, राजस्थान और 2024 के हरियाणा विधानसभा चुनावों में उसे कोई फायदा नहीं मिला।
2015 में बीएसपी से राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा छिनने का खतरा था, लेकिन तब चार राज्यों में क्षेत्रीय पार्टी होने के कारण यह दर्जा नहीं छिना था। 2025 में चुनाव आयोग द्वारा राष्ट्रीय पार्टी के दर्जे की समीक्षा की जा सकती है, और यदि पार्टी राष्ट्रीय स्तर पर कोई महत्वपूर्ण प्रदर्शन नहीं करती है, तो उसे यह दर्जा खोने का सामना करना पड़ सकता है।
आजसू पर टूट का खतरा
झारखंड में सुदेश महतो की पार्टी आजसू के लिए भी 2024 मुश्किलें लेकर आया है। पार्टी ने बीजेपी के साथ मिलकर चुनावी मैदान में उतरी थी, लेकिन उसे केवल एक सीट पर जीत मिली और पार्टी के प्रमुख सुदेश महतो खुद चुनाव हार गए। हार के बाद पार्टी में टूट की संभावना बढ़ गई है। लोहरदगा से आजसू के उम्मीदवार नीरू शांति भगत ने हाल ही में झारखंड मुक्ति मोर्चा (जेएमएम) के नेता हेमंत सोरेन से मुलाकात की, जिससे यह संकेत मिल रहा है कि भगत जेएमएम में शामिल हो सकते हैं। इसके अलावा, पार्टी के अन्य नेता भी पाला बदलने की प्रक्रिया में जुटे हुए हैं।
दुष्यंत चौटाला के लिए संकट
हरियाणा के डिप्टी सीएम रहे दुष्यंत चौटाला की पार्टी जेजेपी भी 2024 में बुरी तरह हार गई है। पार्टी का कोई विधायक नहीं जीत सका, और खुद दुष्यंत चौटाला भी चुनाव हार गए। अब उनका दफ्तर भी छिन चुका है। पहले चंडीगढ़ के एमएलए फ्लैट में पार्टी का कार्यालय चल रहा था, जिसे अब मंत्री कमल गुप्ता को आवंटित किया गया है। यह दुष्यंत के लिए एक बड़ा झटका है, क्योंकि 2019 में उनकी पार्टी ने 10 विधानसभा सीटों पर जीत हासिल की थी, और वे किंगमेकर की भूमिका में थे।
पशुपति पारस की स्थिति भी खराब
बिहार के पूर्व केंद्रीय मंत्री पशुपति पारस भी 2024 में सियासी संकट से जूझ रहे हैं। उन्हें न तो कोई विधायक मिला है और न ही सांसद। पारस की पार्टी का दफ्तर भी अब छिन चुका है। एनडीए में उनकी जगह उनके भतीजे चिराग पासवान को प्राथमिकता दी गई है, जिससे पारस को बड़ा राजनीतिक धक्का लगा है। अब वे अकेले चुनाव लड़ने की तैयारी कर रहे हैं, और उनकी नजरें 2025 के विधानसभा चुनाव पर हैं।
आरएलपी का प्रदर्शन गिरा
हनुमान बेनीवाल की पार्टी राष्ट्रीय लोकत्रांतिक पार्टी (आरएलपी) का प्रदर्शन भी 2024 में बेहद कमजोर रहा है। 2018 में स्थापित इस पार्टी ने पहले राजस्थान में 3 विधानसभा सीटें जीती थीं, लेकिन अब पार्टी शून्य हो गई है। 2023 के विधानसभा उपचुनावों में बेनीवाल की पत्नी भी हार गईं, और अब उनकी पार्टी राजस्थान विधानसभा में शून्य हो चुकी है। यह पार्टी के लिए एक बड़ा झटका है, और पहली बार ऐसा हुआ है कि पार्टी का विधानसभा में कोई प्रतिनिधित्व नहीं रहा।
2024 ने कई राजनीतिक दलों के लिए संकट के घड़ी ला दी है। कुछ पार्टियां पहले सत्ता का हिस्सा थीं, लेकिन अब उनकी स्थिति कमजोर हो गई है। आने वाले समय में इन पार्टियों के लिए कई चुनौतियां खड़ी हो सकती हैं, और उनका भविष्य अगले चुनावों पर निर्भर करेगा।