राहुल गांधी ने एक बार फिर चुनाव आयोग से ऐसे सवाल पूछ लिए हैं जो सीधे-सीधे वोटिंग सिस्टम की पारदर्शिता पर उंगली उठाते हैं। लेकिन अबकी बार चुनाव आयोग भी चुप नहीं बैठा — उसने भी तगड़ा जवाब दिया है। लेकिन क्या ये जवाब लोगों की शंका दूर करता है या फिर और भी शक को हवा देता है?
राहुल गांधी का सीधा हमला – “क्या चुनाव आयोग अब बीजेपी का एजेंट है?”
राहुल गांधी ने हाल ही में प्रेस कॉन्फ्रेंस कर चुनाव आयोग से पांच सवाल पूछे, और सवाल भी कुछ ऐसे थे जो आम जनता के मन में भी घूमते रहते हैं:
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विपक्ष को डिजिटल वोटर लिस्ट क्यों नहीं दी जाती?
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सीसीटीवी फुटेज क्यों मिटाई जा रही है?
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फर्जी वोटिंग और गड़बड़ लिस्ट क्यों?
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विपक्षी नेताओं को डराया क्यों जा रहा है?
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और आखिरी सवाल, क्या चुनाव आयोग बीजेपी का एजेंट बन चुका है?
इन सवालों से बहस तो छिड़ी ही, चुनाव आयोग को भी मजबूरी में जवाब देना पड़ा।
ECI का जवाब – “पुरानी बोतल में नई शराब”
चुनाव आयोग ने कहा कि राहुल गांधी वही बात दोहरा रहे हैं जो 2018 में कमलनाथ ने कही थी। यानी ECI के हिसाब से राहुल गांधी कोई नया मुद्दा नहीं उठा रहे। आयोग ने इसे “पुरानी बोतल में नई शराब” बताया।
मतलब साफ है — आयोग राहुल के आरोपों को गंभीरता से नहीं ले रहा, बल्कि उसे एक बार फिर वही पुराना शोर-शराबा लग रहा है।
सीसीटीवी पर आयोग का दिलचस्प तर्क – 273 साल लगेंगे!
राहुल गांधी के सबसे बड़े आरोपों में एक था कि सीसीटीवी फुटेज मिटाई जा रही है। इस पर चुनाव आयोग का जवाब सुनिए:
“अगर कोई चुनाव याचिका (Election Petition) दायर करता है तो ही सीसीटीवी फुटेज को बचाया जाता है। वरना 1 लाख पोलिंग बूथ की फुटेज की जांच में 1 लाख दिन लगेंगे – यानी करीब 273 साल!”
अब ये सुनकर कोई भी आम आदमी यही सोचेगा – अगर ये इतना मुश्किल है तो फिर रिकॉर्डिंग की ही क्यों जाती है? और क्या इसका मतलब ये है कि चुनाव में पारदर्शिता दिखाने का सिस्टम खुद ही इतना जटिल है कि सच सामने लाने में सदियाँ लग जाएंगी?
“आपने शिकायत ही नहीं की!” – चुनाव आयोग का उल्टा तंज
ECI ने ये भी कहा कि राहुल गांधी मीडिया में तो बोलते हैं, लेकिन कभी उन्होंने कोई लिखित शिकायत नहीं दी। हां, कांग्रेस के एक वकील ने जरूर महाराष्ट्र को लेकर दिसंबर 2024 में पत्र लिखा था, और उसका जवाब आयोग ने 24 दिसंबर को वेबसाइट पर डाला भी था।
तो अब सवाल ये है – राहुल गांधी का दावा कि आयोग ने कोई जवाब नहीं दिया, वो कितना सही है?
सुप्रीम कोर्ट का हवाला भी दिया गया
चुनाव आयोग ने ये भी बताया कि कांग्रेस ने 2019 में मशीन-रीडेबल वोटर लिस्ट की मांग सुप्रीम कोर्ट में की थी, जो खारिज कर दी गई। यानी उनके हिसाब से ये मुद्दा वहीं खत्म हो जाना चाहिए था।
लेकिन जनता किस पर भरोसा करे?
अब आम मतदाता के सामने बड़ा सवाल ये है कि वो किसकी बात माने। राहुल गांधी ने जो सवाल उठाए हैं, वो हर चुनाव के बाद उठते हैं – फर्जी वोटिंग, गलत वोटर लिस्ट, डराना-धमकाना और सिस्टम का झुकाव एक पार्टी की तरफ।
चुनाव आयोग ने हर बात का जवाब तो दिया, लेकिन जो जवाब मिला, वो किसी को पूरी तरह संतुष्ट नहीं कर पा रहा।
सवाल अभी बाकी हैं…
राहुल गांधी के आरोप भले ही पुराने लगें, लेकिन उनकी गूंज आज भी वैसी ही है। और चुनाव आयोग के जवाब भले ही तकनीकी और प्रोसेस आधारित हों, लेकिन अगर सच में सब कुछ सही है, तो फिर विपक्ष और आम जनता को भरोसा क्यों नहीं हो रहा?
क्या सिस्टम में वाकई कुछ छुपाया जा रहा है या फिर ये सब बस सियासी ड्रामा है?
आपका क्या मानना है? क्या सच में 273 साल लगेंगे वोटिंग की सच्चाई सामने लाने में, या फिर ये बस एक बहाना है? नीचे कमेंट में बताइए!
