बिहार चुनाव को लेकर अब राजस्थान की सियासत भी गरमाने लगी है। कांग्रेस पर्यवेक्षक अशोक गहलोत द्वारा तेजस्वी यादव को महागठबंधन का मुख्यमंत्री चेहरा घोषित किए जाने के बाद, राजस्थान भाजपा अध्यक्ष मदन राठौड़ ने विपक्षी गठबंधन पर तीखा हमला बोला है। राठौड़ ने कहा कि “महागठबंधन के भीतर चल रही कलह और असहमति से जनता में भाजपा के प्रति भरोसा और भी बढ़ा है। जनता मुद्दों, नेतृत्व और स्थिरता के आधार पर भाजपा को ही समर्थन देगी।”
राठौड़ बोले — “गहलोत जहां जाते हैं, वहां भाजपा को फायदा होता है”
भाजपा प्रदेशाध्यक्ष ने तंज कसते हुए कहा, “अशोक गहलोत मुख्यमंत्री का चेहरा घोषित करके खुश हो जाएं, लेकिन महागठबंधन की असलियत यह है कि उनके दलों में सीट बंटवारे पर भी सहमति नहीं बन पा रही है। जो आपस में ही तालमेल नहीं बिठा पा रहे, वे बिहार का भविष्य क्या तय करेंगे?” उन्होंने आगे कहा, “अशोक गहलोत जहां भी जाते हैं, वहां भाजपा को फायदा होता है — और इस बार भी यही होगा।”
गहलोत ने किया था सीएम फेस का ऐलान
पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने गुरुवार (23 अक्टूबर) को पटना में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस आयोजित कर तेजस्वी यादव को ‘इंडिया’ गठबंधन का मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित किया। इस ऐलान के दौरान गहलोत ने कहा कि “कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे और राहुल गांधी की सहमति के बाद, सभी सहयोगी दलों की उपस्थिति में यह निर्णय लिया गया है।” उन्होंने दावा किया कि महागठबंधन पूरी तरह एकजुट है और बिहार में भाजपा को कड़ी चुनौती देगा।
वीआईपी प्रमुख मुकेश सहनी होंगे डिप्टी सीएम, गठबंधन में तालमेल का दावा
गहलोत ने यह भी घोषणा की कि अगर ‘इंडिया’ गठबंधन बिहार में सरकार बनाता है, तो विकासशील इंसान पार्टी (VIP) के प्रमुख मुकेश सहनी को उपमुख्यमंत्री बनाया जाएगा। यह निर्णय महागठबंधन के भीतर संतुलन साधने की कोशिश के रूप में देखा जा रहा है। हालांकि भाजपा इस कदम को केवल “चेहरा आधारित राजनीति” बता रही है।
भाजपा ने कहा — जनता स्थिरता और नेतृत्व चाहती है
मदन राठौड़ ने कहा, “बिहार की जनता यह भलीभांति जानती है कि केवल भाजपा ही स्थिरता, विकास और मजबूत नेतृत्व प्रदान कर सकती है। महागठबंधन के नेता सत्ता की लालसा में एक-दूसरे को पीछे छोड़ने में व्यस्त हैं, जबकि जनता असली मुद्दों पर भाजपा के साथ है।”
विश्लेषकों के अनुसार, बिहार में महागठबंधन के भीतर सीट बंटवारे और नेतृत्व को लेकर असहमति भाजपा के लिए चुनावी तौर पर फायदेमंद साबित हो सकती है। वहीं, कांग्रेस और आरजेडी अब एकजुटता का संदेश देने की कोशिश में हैं, ताकि विपक्षी मोर्चे की छवि मजबूत की जा सके।
