राजस्थान के पूर्व मुख्यमंत्री और कांग्रेस के वरिष्ठ नेता अशोक गहलोत ने हाल ही में चुनाव आयोग की निष्पक्षता और विश्वसनीयता पर गंभीर सवाल खड़े किए हैं। उन्होंने आरोप लगाया है कि चुनाव आयोग सत्ता पक्ष के दबाव में काम कर रहा है और इससे लोकतांत्रिक प्रक्रिया पर गंभीर खतरा मंडरा रहा है। गहलोत ने कहा कि वोट चोरी और चुनाव में अनुचित हस्तक्षेप देश के लोकतंत्र के लिए सबसे बड़ा खतरा है।
गहलोत ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा कि चुनाव आयोग के मुख्य चुनाव आयुक्त के चयन में केंद्रीय गृह मंत्री की भागीदारी ने आयोग के कामकाज और उसकी निष्पक्षता को प्रभावित किया है। उन्होंने कहा कि इसके बाद चुनाव आयोग के रवैये में अहम बदलाव आए हैं, जो चुनाव निष्पक्षता के लिए चिंताजनक है। उन्होंने यह भी सुझाव दिया कि चुनाव आयोग को वोटर लिस्ट को मशीन-रीडेबल फॉर्मेट में उपलब्ध कराना चाहिए ताकि चुनाव प्रक्रिया पारदर्शी और भरोसेमंद बनी रहे।
कांग्रेस नेता राहुल गांधी द्वारा चुनाव आयोग पर लगाए गए आरोपों का समर्थन करते हुए गहलोत ने कहा कि लगातार वोटर लिस्ट में फर्जी नामों के जुड़ने और डेटा में अनियमितताओं के कारण जनता का चुनाव आयोग पर विश्वास घटता जा रहा है। गहलोत ने आरोप लगाया कि बीजेपी लोकतंत्र की हत्या करने की साजिश रच रही है और उसकी यह कार्रवाई लोकतंत्र के लिए बहुत बड़ा खतरा है।
उन्होंने मीडिया और लोकतांत्रिक संस्थाओं पर बढ़ते दबाव की भी चिंता जाहिर की। गहलोत का मानना है कि जब लोकतांत्रिक संस्थाओं और मीडिया पर प्रतिबंध लगाए जाते हैं, तब देश के लोकतंत्र की नींव कमजोर हो जाती है। उन्होंने कहा कि चुनाव आयोग केवल सत्ता पक्ष के नेताओं से मुलाकात करता है और विपक्ष की बात सुनना उसकी प्राथमिकता नहीं रहा।
गहलोत ने स्पष्ट किया कि जब तक चुनाव आयोग पूरी तरह पारदर्शी और जवाबदेह नहीं होगा, तब तक देश का चुनावी सिस्टम विश्वसनीय नहीं होगा और इससे लोकतंत्र को गंभीर खतरा हो सकता है। उन्होंने सभी विपक्षी दलों और आम जनता से अपील की है कि वे लोकतंत्र की रक्षा के लिए एकजुट हों और वोटर डेटा व चुनाव प्रक्रिया की पारदर्शिता के लिए आवाज उठाएं।
उनके बयान पर बीजेपी की प्रतिक्रिया भी आई है। भाजपा नेता व मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा ने गहलोत के आरोपों को खारिज करते हुए कहा कि सरकार विकास कार्यों में कोई बाधा नहीं डाल रही है और चुनाव आयोग पूरी निष्पक्षता से कार्य कर रहा है।
वर्तमान में चुनाव आयोग, सत्ता पक्ष और विपक्ष के बीच तनातनी चरम सीमा पर पहुंच गई है। लगातार उठ रहे सवालों और जनता के संदेह के कारण चुनाव आयोग की विश्वसनीयता पर प्रश्नचिह्न लग चुका है। अशोक गहलोत के बयानों ने इस विवाद को और गहरा कर दिया है। आने वाले दिनों में इस मुद्दे पर राजनीतिक और कानूनी लड़ाई तेज होने की संभावना है, जिससे देश के लोकतंत्र की दिशा पर बड़ा असर पड़ सकता है।
