देश के प्रमुख वामपंथी नेता और CPI (मालेनेविनवादी) लिबरेशन के महासचिव दिवाकर भट्टाचार्य ने हाल ही में चुनाव आयोग की भूमिका पर कड़े शब्दों में सवाल उठाए हैं। उन्होंने आरोप लगाया है कि चुनाव आयोग स्वतंत्र, निष्पक्ष संस्थान होने के बजाय राजनीतिक हितों के चलते सरकार का पक्षधर बन गया है। खासकर बिहार में मतदाता सूची के विशेष और गहन संशोधन (Special Intensive Revision) को लेकर उन्होंने आयोग की आलोचना की है।
भट्टाचार्य ने बताया कि सर्वोच्च न्यायालय ने चुनाव आयोग के फैसलों की देखरेख के लिए प्रधानमंत्री, विपक्ष के नेता और सुप्रीम कोर्ट के एक न्यायाधीश मिलाकर तीन सदस्यीय समिति बनाने की सिफारिश की थी, लेकिन सरकार ने इसका विरोध किया और आयोग को केवल स्वयं और सरकार के प्रति जवाबदेह बना दिया। इससे चुनाव आयोग की कार्रवाईयों में पारदर्शिता और जवाबदेही कमजोर हुई है।
बिहार में चल रहे मतदाता सूची के इस विशेष संशोधन अभियान को भट्टाचार्य ने “मनमाना”, “अव्यवस्थित” और “गैरपारदर्शी” करार दिया। उन्होंने संदेह जताया कि चुनाव आयोग ने राजनीतिक पक्षों से सलाह-मशविरा किए बिना यह क्रांतिकारी कदम उठाया, जिससे मतदाता भ्रमित हुए और उनके मताधिकार पर खतरा पैदा हो गया। बिहार में दर्जनों शिकायतें मतदाताओं द्वारा चुनाव आयोग को भेजी गईं हैं, जिनका समाधान अभी तक नहीं हुआ है, जिससे मतदाता कई बार अपने नाम वापस दर्ज कराने के लिए जटिल प्रक्रिया से गुजरना पड़ रहा है।
भट्टाचार्य ने इस संदर्भ में बिहार में मतदाता अधिकारों की रक्षा के लिए जारी विरोध प्रदर्शनों का समर्थन किया है। वे चुनाव आयोग से आग्रह करते हैं कि वे मतदाता समुदाय की आवाज को दबाने की बजाय गंभीरता से सुनें और उनकी शिकायतों का समाधान करें। उनका यह موقف राहुल गांधी और अन्य विपक्षी नेताओं के समानांतर है, जो लोकतंत्र में पारदर्शिता और निष्पक्षता की मांग कर रहे हैं।
इस पूरे मामले से यह स्पष्ट होता है कि चुनाव आयोग की भूमिका पर जनविश्वास कम होता जा रहा है और यह देश में लोकतांत्रिक प्रक्रिया की मजबूती के लिए चिंता का विषय बन गया है। दिवाकर भट्टाचार्य के आरोपों और सक्रियता से यह संदेश जाता है कि मतदान प्रणाली का पूरी तरह से निष्पक्ष होना आवश्यक है ताकि हर नागरिक के मत का सम्मान हो सके।
इस सिलसिले में विपक्षी दल और सामाजिक संगठन मिलकर चुनाव आयोग की जवाबदेही तय करने और लोकतंत्र की रक्षा के लिए बलपूर्वक कदम उठाने को तैयार हैं। बिहार सहित अन्य राज्यों में चुनाव प्रक्रिया के निष्पक्ष और पारदर्शी संचालन को सुनिश्चित करने की मांग तेज हो रही है।
