दिल्ली पुलिस ने 13 फरवरी 2025 को जामिया मिल्लिया इस्लामिया विश्वविद्यालय के 10 से अधिक छात्रों को गिरफ्तार किया, जो विश्वविद्यालय की अनुशासनात्मक कार्रवाई के खिलाफ प्रदर्शन कर रहे थे। इन छात्रों का प्रदर्शन विश्वविद्यालय के दो पीएचडी छात्रों को जारी किए गए शो-कॉज नोटिस के खिलाफ था, जिन पर पिछले वर्ष एक विरोध प्रदर्शन की योजना बनाने का आरोप था।
यह विरोध सोमवार, 10 फरवरी 2025 को शुरू हुआ था, और इसे विश्वविद्यालय की “छात्र सक्रियता पर क्रैकडाउन” के खिलाफ बताया जा रहा था। छात्र इस बात को लेकर विरोध कर रहे थे कि विश्वविद्यालय प्रशासन उनके अधिकारों का उल्लंघन कर रहा है और छात्रों की आवाज को दबाने की कोशिश कर रहा है। हालांकि, विश्वविद्यालय ने यह आरोप लगाया कि प्रदर्शनकारी छात्रों ने विश्वविद्यालय की संपत्ति को नुकसान पहुँचाया, जिसमें सुरक्षा सलाहकार के कार्यालय और केंद्रीय कैंटीन शामिल थे।
विश्वविद्यालय का बयान
विश्वविद्यालय प्रशासन ने एक बयान जारी करते हुए कहा कि “सावधानी बरतते हुए, आज सुबह विश्वविद्यालय प्रशासन और प्रॉक्टोरियल टीम ने छात्रों को विरोध स्थल से हटा दिया और उन्हें परिसर से बाहर कर दिया। पुलिस को कानून और व्यवस्था बनाए रखने के लिए कहा गया था।” विश्वविद्यालय ने यह भी कहा कि “हमारे पास विश्वविद्यालय प्रशासन से एक अनुरोध था, जिसके बाद पुलिस ने सुबह 4 बजे के आसपास 10 से अधिक छात्रों को हटाया। शांति और व्यवस्था बनाए रखने के लिए हमने कैंपस के बाहर पुलिस की तैनाती बढ़ा दी है।”
प्रदर्शन का कारण और विश्वविद्यालय की कार्रवाई
विश्वविद्यालय के अनुसार, छात्रों का विरोध 10 फरवरी 2025 की शाम से शुरू हुआ था, जब कुछ छात्रों ने अकादमिक भवन में अवैध रूप से एकत्र होकर विरोध किया था। विश्वविद्यालय ने दावा किया कि ये छात्र न केवल विश्वविद्यालय के शैक्षिक संचालन में रुकावट डाल रहे थे, बल्कि वे केंद्रीय पुस्तकालय का उपयोग करने वाले अन्य छात्रों को भी रोक रहे थे। इसके परिणामस्वरूप कई छात्रों को अपनी कक्षाओं में भाग लेने में कठिनाई हो रही थी, जबकि जामिया मिल्लिया इस्लामिया के मध्यकालीन परीक्षा (मिड-टर्म परीक्षा) की शुरुआत होने वाली थी।
विश्वविद्यालय ने कहा, “इन कुछ छात्रों ने पिछले दो दिनों में विश्वविद्यालय की संपत्ति को नुकसान पहुँचाया, जिसमें केंद्रीय कैंटीन और सुरक्षा सलाहकार के गेट को तोड़ना शामिल था। इसके अलावा, विश्वविद्यालय ने आरोप लगाया कि इन छात्रों के पास आपत्तिजनक सामग्री भी थी। इस सब को ध्यान में रखते हुए, विश्वविद्यालय प्रशासन ने कार्रवाई की ताकि परिसर में शांति और सामान्य शैक्षिक गतिविधियां सुनिश्चित की जा सकें।”
विश्वविद्यालय का आधिकारिक पक्ष
विश्वविद्यालय प्रशासन ने यह भी कहा कि इन छात्रों द्वारा की गई कार्रवाई से न केवल विश्वविद्यालय की संपत्ति को नुकसान हुआ, बल्कि अन्य छात्रों के लिए भी असुविधाएं उत्पन्न हुईं। विश्वविद्यालय ने दावा किया कि उन्होंने इन छात्रों से बातचीत करने का कई बार प्रयास किया, लेकिन छात्र बातचीत करने से इंकार कर रहे थे। प्रशासन ने यह भी कहा कि इन छात्रों को बातचीत के लिए एक कमेटी में शामिल होने का प्रस्ताव दिया था, लेकिन उन्होंने इस प्रस्ताव को भी नकारा कर दिया।
विश्वविद्यालय ने आगे कहा कि “छात्रों द्वारा की गई अव्यवस्था, संपत्ति का नुकसान और कक्षाओं में विघटन के कारण प्रशासन को कार्रवाई करने के लिए मजबूर होना पड़ा। इन छात्रों की यह गतिविधियां विश्वविद्यालय के नियमों और दिशा-निर्देशों का उल्लंघन करती हैं।”
पुलिस की भूमिका और प्रतिक्रिया
दिल्ली पुलिस ने विश्वविद्यालय प्रशासन के अनुरोध पर छात्रों को गिरफ्तार किया और उन्हें परिसर से बाहर कर दिया। पुलिस का कहना था, “हमने विश्वविद्यालय प्रशासन से अनुरोध प्राप्त किया और छात्रों को परिसर से हटा दिया। इस कदम से शांति बनाए रखने और विश्वविद्यालय परिसर में व्यवस्था बनाए रखने में मदद मिली।”
पुलिस का यह कदम तब आया जब विश्वविद्यालय ने कहा कि छात्रों की गतिविधियों से न केवल विश्वविद्यालय के शैक्षिक माहौल में खलल पड़ा था, बल्कि इससे परीक्षा की तैयारी करने वाले अन्य छात्रों को भी परेशानी हो रही थी।
छात्रों का विरोध और उनके दावे
विरोध करने वाले छात्रों का कहना था कि विश्वविद्यालय प्रशासन द्वारा की गई कार्रवाई अनावश्यक और उत्पीड़क थी। उनके अनुसार, यह विरोध केवल उनके अधिकारों की रक्षा के लिए था, और वे विश्वविद्यालय प्रशासन से अपने मुद्दों को साझा करने के लिए खुले थे। छात्रों ने यह भी आरोप लगाया कि विश्वविद्यालय ने जानबूझकर उनकी आवाज़ दबाने की कोशिश की और उन्हें अपनी मांगों के बारे में बातचीत करने का कोई उचित मौका नहीं दिया।
छात्रों ने यह भी कहा कि उनका उद्देश्य किसी भी प्रकार की हिंसा या संपत्ति को नुकसान पहुँचाना नहीं था। उनका मुख्य लक्ष्य यह था कि विश्वविद्यालय प्रशासन उनकी चिंताओं को सुने और उनके अधिकारों का उल्लंघन बंद करे। उन्होंने आरोप लगाया कि प्रशासन ने छात्र-हितैषी नीतियों को नज़रअंदाज़ किया और उन पर कड़ी कार्रवाई की।