मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री मोहन यादव ने गुरुवार को राज्य के 17 धार्मिक स्थलों पर शराब पर प्रतिबंध लगाने का ऐलान किया। उनका कहना है कि यह कदम शराब के सेवन से उत्पन्न होने वाली सामाजिक-आर्थिक समस्याओं से निपटने के लिए उठाया जा रहा है। मुख्यमंत्री यादव ने यह घोषणा नरसिंहगढ़ जिले के गोतेगांव में एक प्रो-कबड्डी टूर्नामेंट के दौरान की।
धार्मिक स्थलों पर शराब पर प्रतिबंध
हालांकि, राज्य सरकार ने शराब प्रतिबंधित करने वाले 16 धार्मिक स्थलों के नामों का खुलासा नहीं किया है और न ही प्रतिबंध लागू करने की तारीख का ऐलान किया है। अधिकारियों ने बताया कि इस पर कैबिनेट शुक्रवार को महेश्वर मंदिर क्षेत्र में बैठक करेगी। सूत्रों के अनुसार, शराब प्रतिबंध उज्जैन, ओरछा, सलकनपुर, चित्रकूट, ओंकारेश्वर, महेश्वर, मैहर, अमरकंटक और मंदसौर के पशुपतिनाथ मंदिर क्षेत्र में लागू किया जा सकता है।
धार्मिक महत्व वाले स्थल
उज्जैन और ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग के स्थलों के रूप में प्रसिद्ध हैं, जबकि मैहर एक शक्ति पीठ है। ओंकारेश्वर और महेश्वर जैसे स्थान भारत के सबसे प्रसिद्ध धार्मिक स्थलों में शामिल हैं। अयोध्या और अमरकंटक से भी धार्मिक दृष्टि से बहुत महत्व जुड़ा हुआ है, जहां नर्मदा नदी का उद्गम स्थल है।

शराब प्रतिबंध का राजनीतिक इतिहास
मध्य प्रदेश में शराब प्रतिबंध का मुद्दा तीन दशकों से अधिक समय से राजनीति में गर्मा-गर्म चर्चा का विषय रहा है। कांग्रेस सरकार के समय, तत्कालीन मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह के दौर में भी विधायक सुभाष यादव ने शराब पर प्रतिबंध लगाने की मांग की थी। यह मांग दिग्विजय सिंह और सुभाष यादव के बीच राजनीतिक दबाव का कारण बनी।
उमा भारती, जब 2004 में मुख्यमंत्री बनीं, तो उन्होंने अमरकंटक और महेश्वर को “पवित्र शहर” घोषित कर वहां शराब और मांस बिक्री पर प्रतिबंध लगा दिया था। इसके बाद शिवराज सिंह चौहान ने इन धार्मिक स्थलों पर शराब बिक्री पर प्रतिबंध को बढ़ाया, जिसमें उज्जैन और ओरछा शामिल थे।
2018 के विधानसभा चुनावों से पहले, चौहान ने नर्मदा नदी के किनारे 5 किमी क्षेत्र में शराब की दुकानों को बंद करने का ऐलान किया था, जिसके कारण लगभग 60 शराब की दुकानों को स्थानांतरित किया गया था।
अब मुख्यमंत्री मोहन यादव ने धार्मिक स्थलों पर शराब पर प्रतिबंध की घोषणा करके इस मुद्दे को फिर से गरमा दिया है।
