नई दिल्ली: राहुल गांधी ने देश की लोकतांत्रिक प्रणाली की मजबूती और निष्पक्ष चुनाव सुनिश्चित करने के लिए एक प्रभावशाली मोर्चा कायम किया है। हाल ही में उन्होंने कई विपक्षी दलों के नेताओं के समक्ष चुनावी अनियमितताओं पर एक विस्तृत प्रस्तुति दी, जिससे केंद्र सरकार की स्थिति चुनौतीपूर्ण हो गई है। इस बैठक में कांग्रेस समेत लगभग 25 विपक्षी दल शामिल हुए, जिनके सामने राहुल गांधी ने चुनाव आयोग और सरकार की चुनाव प्रक्रिया में कथित धांधली के प्रमाण पेश किए।
राहुल गांधी ने कहा कि 2024 के लोकसभा चुनावों में भाजपा को अप्राकृतिक रूप से बढ़त दिलाने के लिए कई जगहों पर वोटिंग प्रणाली में गड़बड़ियां हुई हैं। उन्होंने विशेष रूप से कर्नाटक की बेंगलूरु सेंट्रल सीट और महादेवपुरा विधानसभा क्षेत्र के उदाहरण देते हुए बताया कि वहां फर्जी वोटों के कारण परिणाम प्रभावित हुए। राहुल गांधी का यह भी कहना था कि चुनाव आयोग की भूमिका संदिग्ध रही है, जिसने चुनाव निष्पक्षता को प्रभावित किया है।
इस प्रस्तुति के बाद विपक्ष के नेताओं ने एकजुट होकर सरकार के खिलाफ विरोध प्रदर्शन का ऐलान किया। 11 अगस्त को संसद के बाहर एक बड़े मार्च का आयोजन किया जाएगा, जिसे भारत के लोकतंत्र की रक्षा के लिहाज से महत्वपूर्ण माना जा रहा है। विपक्ष ने सरकार की नीतियों और चुनाव प्रणाली पर कड़ी निंदा करते हुए संयुक्त संघर्ष की बात कही।
राहुल गांधी के नेतृत्व में कांग्रेस और सहयोगी दल इस मुद्दे को देश के सामने उजागर करने के लिए प्रतिबद्ध हैं। बिहार के नेता तेजस्वी यादव ने भी राज्यस्तर पर आंदोलन छेड़ने की घोषणा की है, जिससे सरकार पर और दबाव बढ़ा है। वहीं सरकार ने चुनाव आयोग के माध्यम से राहुल गांधी से इस मामले पर स्पष्ट प्रमाण या माफी मांगने का आग्रह किया है, पर राहुल गांधी ने आरोपों को पूरी मजबूती से कायम रखा है।
यह स्पष्ट है कि राहुल गांधी लोकतंत्र के अधिकारों की रक्षा और चुनाव प्रक्रिया में पारदर्शिता लाने के लिए लगातार संघर्षरत हैं। उनका यह अभियान आम जनता को भी आश्वस्त करता है कि उनके मत का सम्मान किया जाएगा और लोकतांत्रिक संस्थानों की विश्वसनियता को बनाए रखने के लिए संघर्ष किया जा रहा है।
राहुल गांधी की यह पहल चुनाव प्रक्रिया में पारदर्शिता और जवाबदेही लाने के लिए एक निर्णायक कदम है। उनकी सक्रियता और नेतृत्व ने विपक्ष को फिर से सशक्त किया है, जिससे सत्ता पक्ष को भी अपनी नीतियों पर विचार करना पड़ रहा है। इस तरह यह आंदोलन भारतीय लोकतंत्र के लिए एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर बन सकता है।
