राजस्थान राज्य के नगरीय विकास, आवासन एवं स्वायत्त शासन विभाग के मंत्री, झाबर सिंह खर्रा, हाल ही में दो दिवसीय जोधपुर प्रवास पर पहुंचे। इस दौरान उन्होंने जोधपुर के सर्किट हाउस में मीडिया से बातचीत की और राज्य सरकार के कई अहम फैसलों, नीतियों और योजनाओं के बारे में विस्तार से बताया। मंत्री खर्रा ने विशेष रूप से नए जिलों के रद्द करने, नगर निगम चुनाव, सब इंस्पेक्टर भर्ती, शिक्षकों के तबादलों और अन्य प्रशासनिक मुद्दों पर अपनी प्रतिक्रिया दी। उनके इस बयान से राज्य सरकार की स्थिति और उसकी योजनाओं पर प्रकाश पड़ा।
नए जिलों का रद्द करना – वित्तीय दृष्टिकोण से अनावश्यक बोझ
मंत्री झाबर सिंह खर्रा से जब नए जिलों के रद्द होने के बारे में सवाल किया गया, तो उन्होंने इस मुद्दे पर स्पष्ट रुख अपनाया। उन्होंने कहा कि राजस्थान की पिछली सरकार ने बिना किसी वित्तीय योजना के नए जिलों का गठन किया था, जो राज्य के लिए अनावश्यक वित्तीय बोझ साबित हो रहा था। मंत्री ने बताया कि किसी नए जिले के गठन के लिए कम से कम 75 से 100 करोड़ रुपये की आवश्यकता होती है, जिससे वहां स्थायी संपत्तियों का निर्माण किया जा सके, जैसे कि प्रशासनिक भवन, अदालतें, पुलिस स्टेशन, स्कूल और अन्य बुनियादी ढांचे। इसके अलावा, नए जिलों में हर महीने कर्मचारियों के वेतन और अन्य प्रशासनिक खर्चों का बोझ भी राज्य पर पड़ता है।
मंत्री खर्रा ने बताया कि कुछ ऐसे जिलों का निर्माण किया गया था, जिनमें केवल एक तहसील को जिला बना दिया गया था। यह कदम न केवल व्यावहारिक दृष्टि से गलत था, बल्कि इससे राज्य की वित्तीय स्थिति पर भी दबाव बढ़ा। उन्होंने उदाहरण देते हुए कहा कि “कुछ जिलों को बनाना केवल कागजी प्रक्रिया थी, जबकि वास्तव में इनसे जनता को कोई खास लाभ नहीं हुआ।” मंत्री ने कहा कि राजस्थान सरकार ने इन अनावश्यक जिलों को रद्द कर जनहित और राज्य के हित में एक सही निर्णय लिया है।
इसके अलावा, उन्होंने यह भी बताया कि यह निर्णय मंत्रिमंडल की उप-समिति और अन्य समितियों के सुझावों पर लिया गया, जिन्होंने इन जिलों को व्यावहारिक दृष्टिकोण से अनुकूल नहीं बताया। मंत्री ने स्पष्ट किया कि उनकी सरकार ने यह कदम राज्य पर अनावश्यक वित्तीय बोझ डालने से बचने के लिए उठाया है।
पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत की प्रतिक्रिया और सरकार की स्थिति
पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने नए जिलों के रद्द होने पर एक प्रेस कॉन्फ्रेंस की थी, जिसमें उन्होंने आरोप लगाया था कि उनकी सरकार ने नए जिलों के गठन के लिए कार्यालय स्थापित कर दिए थे और फिर इन जिलों को रद्द करना उचित नहीं है। इस पर मंत्री खर्रा ने तीखी प्रतिक्रिया दी और कहा कि गहलोत सरकार ने सिर्फ कागजों पर कार्य किए थे, जबकि वास्तविकता यह थी कि इन जिलों में कोई ठोस योजना और संसाधन नहीं थे। उन्होंने उदाहरण दिया कि गहलोत सरकार ने छात्रावासों को कार्यालयों में बदल दिया था, जिससे छात्रों को असुविधा हुई, लेकिन कार्यालयों में कोई कामकाजी वातावरण नहीं था।
मंत्री खर्रा ने यह भी सवाल किया कि क्या राज्य की आर्थिक स्थिति इतनी सशक्त थी कि हर नए जिले पर 100 करोड़ रुपये का वित्तीय भार सहन किया जा सके? उन्होंने कहा कि जब सरकार के पास पर्याप्त संसाधन नहीं थे, तब ऐसे फैसले लेना सिर्फ राजकोष पर दबाव डालना था, जो राज्य के वित्तीय स्वास्थ्य के लिए ठीक नहीं था।
मंत्री ने यह भी कहा कि जिस तरह से पूर्व सरकार ने प्रत्येक तहसील को जिला बना दिया था, वह न्यायसंगत नहीं था। उन्होंने उदाहरण दिया कि दूदू और केकड़ी जैसे इलाकों को एक-एक तहसील के रूप में जिले का दर्जा दिया गया था, जो न केवल प्रशासनिक दृष्टि से अनुपयुक्त था, बल्कि यह निर्णय राज्य के संसाधनों का दुरुपयोग था।
नगरीय निकाय चुनाव – सीमा विस्तार के बाद वार्डों का पुनर्गठन
मंत्री झाबर सिंह खर्रा से जोधपुर नगर निगम चुनाव के बारे में पूछा गया, तो उन्होंने इस मुद्दे पर कहा कि वर्तमान में नगर निगम के सीमा विस्तार पर काम चल रहा है। सीमा विस्तार के बाद ही वार्डों का पुनर्गठन किया जाएगा। पुनर्गठन के बाद ही नए चुनावी इलाकों का निर्धारण होगा और तब मतदाता सूची में बदलाव किया जाएगा। मंत्री ने कहा कि सीमा विस्तार होने के बाद ही चुनावों के बारे में विचार किया जाएगा और तब चुनाव की तिथि की घोषणा की जाएगी।
मंत्री खर्रा ने यह भी कहा कि नगर निगम चुनाव के लिए पूरी प्रक्रिया को सुव्यवस्थित तरीके से और समयबद्ध तरीके से किया जाएगा, ताकि कोई कानूनी या प्रशासनिक अड़चन न हो। उन्होंने यह स्पष्ट किया कि सरकार चुनावों को लेकर जल्दबाजी नहीं करेगी, बल्कि सभी आवश्यक प्रशासनिक कदम उठाएगी ताकि किसी प्रकार की गड़बड़ी से बचा जा सके।
सब इंस्पेक्टर भर्ती और उच्च न्यायालय में लंबित मामला
राजस्थान में सब इंस्पेक्टर भर्ती के मुद्दे पर भी मंत्री झाबर सिंह खर्रा से सवाल किया गया। मंत्री ने इस मुद्दे पर कहा कि सब इंस्पेक्टर भर्ती का मामला पहले से ही उच्च न्यायालय में विचाराधीन है, और सरकार ने इस पर अभी तक कोई निर्णय नहीं लिया है। मंत्री ने बताया कि जब तक उच्च न्यायालय से कोई आदेश नहीं आता, तब तक इस मामले में सरकार कोई कदम नहीं उठा सकती।
मंत्री ने यह भी कहा कि सरकार का उद्देश्य सिर्फ न्यायपूर्ण तरीके से काम करना है और जब न्यायालय का आदेश आएगा, तब उसी के आधार पर सरकार निर्णय लेगी। उन्होंने यह स्पष्ट किया कि इस समय सरकार अदालत में मामले का पक्ष रखेगी और पूरी प्रक्रिया को कानूनी तरीके से हल करने का प्रयास करेगी।
शिक्षकों के तबादले और विधानसभा सत्र का प्रभाव
शिक्षकों के तबादले के बारे में भी मंत्री से सवाल किया गया, क्योंकि शिक्षकों में इसको लेकर कई तरह की चिंताएं थीं। मंत्री ने इस पर कहा कि विधानसभा सत्र जल्द ही शुरू होने वाला है, और ऐसे में शिक्षकों के तबादले बीच सत्र में नहीं किए जाएंगे। उन्होंने बताया कि शिक्षा विभाग में यह एक महत्वपूर्ण मामला है और इसे सत्र समाप्त होने के बाद ही उचित समय पर किया जाएगा।
मंत्री ने कहा कि सरकार शिक्षकों के तबादले के मामले में जल्दबाजी नहीं करेगी। यह सुनिश्चित किया जाएगा कि शिक्षकों की सेवा में कोई व्यवधान न हो और बच्चों की पढ़ाई पर इसका कोई नकारात्मक प्रभाव न पड़े। उन्होंने यह भी कहा कि सरकार इस मुद्दे पर सोच-समझकर निर्णय लेगी और केवल ऐसा कदम उठाएगी जो शिक्षकों और छात्रों के लिए हितकारी हो।
सामाजिक कार्यक्रमों में भागीदारी – समाज से जुड़ाव
मंत्री झाबर सिंह खर्रा ने यह भी बताया कि वे जोधपुर में एक सामाजिक कार्यक्रम में भाग लेने के लिए आए हैं। उन्होंने कहा कि समाज के विभिन्न वर्गों के साथ जुड़ना और उनकी समस्याओं को समझना उनके लिए अहम है। ऐसे कार्यक्रमों में भाग लेकर वे समाज के अंदर व्याप्त मुद्दों को समझ सकते हैं और सरकारी योजनाओं का सही तरीके से कार्यान्वयन सुनिश्चित कर सकते हैं। मंत्री ने यह भी कहा कि समाज में बदलाव लाने के लिए सरकार का जनता से सीधा संपर्क जरूरी है, और वे इसी उद्देश्य से जोधपुर आए हैं।
निष्कर्ष
मंत्री झाबर सिंह खर्रा का जोधपुर प्रवास राजस्थान सरकार की नीतियों और योजनाओं के बारे में जनता को जानकारी देने के लिए एक अहम कदम था। उन्होंने कई महत्वपूर्ण मुद्दों पर अपनी सरकार का पक्ष रखा और स्पष्ट किया कि राज्य की आर्थिक स्थिति और संसाधनों के दृष्टिकोण से कई फैसले क्यों जरूरी थे। उन्होंने नए जिलों के रद्द होने, नगर निगम चुनाव, सब इंस्पेक्टर भर्ती, और शिक्षकों के तबादले जैसे मामलों पर विचार करते हुए बताया कि सरकार प्रशासनिक फैसलों को पूरी सोच-समझ के साथ और जनहित में ले रही है।
राज्य सरकार की इस नीति से यह संदेश मिलता है कि जनता के भले के लिए, सरकार किसी भी अनावश्यक वित्तीय बोझ को नहीं उठाएगी और हमेशा प्रगति के लिए उचित निर्णय लेगी। इसके अलावा, मंत्री का यह बयान राज्य की राजनीतिक और प्रशासनिक स्थिरता की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम साबित हो सकता है।
