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Tuesday, June 17, 2025

सूतक और पातक क्या होता है ,और कब लगता है ? आइये जानते है

सनातन संस्कारी बहुत ही व्यापक और वैज्ञानिक दृष्टिकोण से समृद्ध है इसमे बहुत से नियम है जो की जीवन में लगभग हर परीस्थिति में लागु होते है

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सनातन संस्कारी बहुत ही व्यापक और वैज्ञानिक दृष्टिकोण से समृद्ध है इसमे बहुत से नियम है जो की जीवन में लगभग हर परीस्थिति में लागु होते है इस तरह ही एक नियम है कुछ समय के लिए धार्मिक कार्यों से दुरी बना लेने का जिसे सूतक और पातक नाम से जाना जाता है जो हर घर हर क्षेत्र में अलग अलग नाम से पहचाना जाता है|

इस दौरान देवी-देवताओं की पूजा नहीं की जाती

सूर्यग्रहण और चंद्रग्रहण में लगने वाले सूतक काल से आप सब भली-भांति परिचित होंगे. इसे भारत में बहुत गंभीरता से लिया जाता है. सूतक काल के दौरान मंदिरों के पट बंद रहते हैं. इस दौरान देवी-देवताओं की पूजा नहीं की जाती. इसके अलावा सूतक काल में कई अन्य काम भी वर्जित होते हैं. लेकिन क्या आप जानते हैं की ग्रहण के अलावा जन्म और मरण से भी सूतक और पातक का संबंध होता है. आइए  जानते हैं कि सूतक और पातक क्या है और ये कब कब लागू होते हैं.

क्या होती है सूतक 

सूर्यग्रहण और चंद्रग्रहण के अलावा घर में नए सदस्य के आगमन अर्थात शिशु के जन्म होने के बाद कुछ दिनों के लिए सूतक होता है. इस दौरान घर पर कोई धार्मिक कार्य जैसे पूजा-पाठ करना, मंदिर जाना, किसी धार्मिक स्थानों पर जाना आदि वर्जित माने जाते हैं. शास्त्रों में घर पर नवजात के जन्म की इस अवधि को सूतक कहा गया है कुछ जगह यह 12 दिन की होती है . हालांकि, अलग-अलग क्षेत्रों में जन्म के पश्चात होने वाले इस सूतक को अलग-अलग नामों से जाना जाता है. जैसे महाराष्ट्र में इसे वृद्धि, राजस्थान में सांवड़ और मध्य प्रदेश में सोर, छत्तीसगढ़, बिहार आदि उत्तरी राज्यों में सूतक के नाम से जाना जाता है.

क्या होती है पातक 

जिस तरह शिशु के जन्म के पश्चात घरवालों को सूतक लगता है, उसी तरह घर पर किसी परिजन की मृत्यु होने पर पूरे 13 दिनों तक पातक लगता है. इस अवधि में धर्म-कर्म जैसे कार्य करना वर्जित होता है. साथ ही इस दौरान किसी बाहरी व्यक्ति के घर आना-जाना या किसी समारोह में शामिल होना भी वर्जित होता है. इसे ही पातक कहा जाता है. इस दौरान घरों में अन्य कई नियम भी किए जाते हैं. शास्त्रों के अनुसार पातक काल के दौरान नियमों का पालन किया जाता है.

इन दोनों के वैज्ञानिक तथ्य भी हैं

‘सूतक’ और ‘पातक’ सिर्फ धार्मिक कर्मंकांड नहीं है। इन दोनों के वैज्ञानिक तथ्य भी हैं। जब परिवार में बच्चे का जन्म होता है या किसी सदस्य की मृत्यु होती है उस अवस्था में संक्रमण फैलने की संभावना काफी ज्यादा होती है। ऐसे में अस्पताल या शमशान या घर में नए सदस्य के आगमन, किसी सदस्य की अंतिम विदाई के बाद घर में संक्रमण का खतरा मंडराने लगता है।

इसलिए यह दोनों प्रक्रिया बीमारियों से बचने के उपाय है, जिसमें घर और शरीर की शुद्धी की जाती है। जब ‘सूतक’ और ‘पातक’ की अवधि समाप्त हो जाती है तो घर में हवन कर वातावरण को शुद्ध किया जाता है। उसके बाद परम पिता परमेश्वर से नई शुरूआत के लिए प्रार्थना की जाती है। ग्रहण और सूतक के पहले यदि खाना तैयार कर लिया गया है तो खाने-पीने की सामग्री में तुलसी के पत्ते डालकर खाद्य सामग्री को प्रदूषित होने से बचाया जा सकता है।

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