प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने विश्व पर्यावरण दिवस के अवसर पर ‘एक पेड़ माँ के नाम’ अभियान के दूसरे चरण की शुरुआत की। इस अभियान के तहत उन्होंने दक्षिण दिल्ली के रिज क्षेत्र में वृक्षारोपण किया, जिसका उद्देश्य अरावली पर्वतमाला में क्षतिग्रस्त भूमि का पुनर्स्थापन है। यह पहल पर्यावरण संरक्षण और पारिस्थितिकी तंत्र की बहाली के लिए एक महत्वपूर्ण कदम है।
इस अभियान के पहले वर्ष में, गुजरात सरकार ने शहरी क्षेत्रों में 15.72 करोड़ और ग्रामीण क्षेत्रों में 1.76 करोड़ पौधे लगाए, जिससे कुल 17.48 करोड़ पौधारोपण हुआ। यह उपलब्धि राज्य को राष्ट्रीय स्तर पर दूसरे स्थान पर ले आई।
हालांकि, पर्यावरण संरक्षण के इन प्रयासों के बीच, जयपुर के डोल का बध क्षेत्र में 2,500 से अधिक पेड़ों की कटाई को लेकर स्थानीय नागरिकों और पर्यावरण कार्यकर्ताओं ने विरोध प्रदर्शन किया। राजस्थान सरकार और RIICO द्वारा प्रस्तावित प्रधानमंत्री यूनिटी मॉल और अन्य वाणिज्यिक परियोजनाओं के लिए इस हरित क्षेत्र को साफ किया जा रहा है, जिससे स्थानीय पारिस्थितिकी तंत्र पर खतरा मंडरा रहा है।
प्रदर्शनकारियों ने ‘सेव डोल का बध’ अभियान के तहत मानव श्रृंखला बनाकर विरोध जताया। उनका कहना है कि यह क्षेत्र जयपुर के दक्षिणी हिस्से के “फेफड़े” हैं और यहां की हरियाली और जैव विविधता को संरक्षित करना आवश्यक है। इस क्षेत्र में खेजड़ी जैसे महत्वपूर्ण पेड़ और 80 से अधिक पक्षियों की प्रजातियाँ पाई जाती हैं, जिनकी संख्या पेड़ों की कटाई के कारण घट रही है।
प्रदर्शनकारियों ने सरकार से अनुरोध किया है कि वे विकास परियोजनाओं के लिए कम पेड़ घनत्व वाले क्षेत्रों का चयन करें, ताकि हरित आवरण को नुकसान न पहुंचे। उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि विपक्ष में रहते हुए वर्तमान उपमुख्यमंत्री दीया कुमारी इस कटाई का विरोध करती थीं, लेकिन अब सत्ता में आने के बाद वे इस मुद्दे पर चुप हैं।
इस विरोध के बावजूद, RIICO ने क्षेत्र में बुलडोजर भेजकर भूमि समतल करने का प्रयास किया, जिसे स्थानीय नागरिकों और छात्रों ने रोक दिया।
इस विरोधाभास से स्पष्ट है कि एक ओर सरकार पर्यावरण संरक्षण के लिए अभियान चला रही है, वहीं दूसरी ओर विकास परियोजनाओं के नाम पर हरित क्षेत्रों की बलि दी जा रही है। यह आवश्यक है कि विकास और पर्यावरण संरक्षण के बीच संतुलन स्थापित किया जाए, ताकि भविष्य की पीढ़ियों को एक स्वस्थ पर्यावरण मिल सके।