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Sunday, December 14, 2025

नीमराना के गूगलकोटा गांव में दहेज-मुक्त विवाह ने दिया समाज को प्रेरणादायक संदेश

नीमराना के गूगलकोटा में दूल्हे ने 11 लाख दहेज ठुकराया। चांदी सिक्का-नारियल लिया। रेणुका-करण की शादी बनी दहेज विरोधी मिसाल। समाज में सराहना।

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नीमराना (कोटपूतली) के गूगलकोटा गांव में एक विवाह समारोह ने दहेज प्रथा के खिलाफ मजबूत संदेश दिया। यहां दूल्हे पक्ष ने विदाई के समय परंपरा के अनुसार दिए जा रहे 11 लाख रुपये दहेज को साफ तौर पर ठुकरा दिया। दूल्हे के परिवार ने केवल सम्मान के प्रतीक के रूप में एक चांदी का सिक्का और नारियल स्वीकार किया, जिससे विदाई की रस्म पूरी हुई। यह घटना पूरे क्षेत्र में चर्चा का विषय बनी हुई है।

गूगलकोटा गांव की रहने वाली रेणुका कंवर का विवाह मंडावरा (अजमेर) के करण सिंह राठौड़ से हुआ। करण सिंह अपनी बारात लेकर गांव पहुंचे और विवाह पूरे रीति-रिवाजों के साथ संपन्न कराया। रेणुका ने अपने ननिहाल में मामा पवन सिंह, दिनेश सिंह, महेश सिंह और नाना रामेश्वर सिंह के संरक्षण में शिक्षा ग्रहण की। उन्होंने बीकॉम तक की उच्च शिक्षा प्राप्त की है, जो उनकी मेहनत और परिवार के सहयोग का प्रमाण है।

दूल्हा करण सिंह राठौड़ वर्तमान में निवाई, जिला टोंक में मूक-बधिर बच्चों को पढ़ाने का नेक कार्य कर रहे हैं। उनके पिता संजय सिंह राठौड़ अजमेर के एक निजी कॉलेज में कार्यरत हैं। विदाई के पल में जब दुल्हन पक्ष ने 11 लाख रुपये दहेज के रूप में देने का प्रयास किया, तो संजय सिंह और परिजनों ने दृढ़ता से इनकार कर दिया। उन्होंने पूरी राशि लौटा दी और समाज को दहेज जैसी कुरीति से मुक्त होने का संदेश दिया।

इस अवसर पर करण सिंह राठौड़ ने कहा, “मुझे दहेज की कोई आवश्यकता नहीं। मेरे लिए एक पढ़ी-लिखी और समझदार जीवनसाथी मिलना ही सबसे बड़ा दहेज है।” वहीं, दुल्हन रेणुका कंवर ने ससुराल पक्ष की इस पहल की सराहना करते हुए कहा कि इससे समाज में सकारात्मक बदलाव आएगा। दहेज प्रथा के खिलाफ यह कदम न केवल प्रेरणादायक है, बल्कि युवा पीढ़ी के लिए आदर्श प्रस्तुत करता है।

ग्रामीणों और जनप्रतिनिधियों ने इस पहल की खुलकर तारीफ की। उन्होंने इसे समाज सुधार की दिशा में महत्वपूर्ण कदम बताया। गूगलकोटा जैसे ग्रामीण इलाकों में जहां दहेज की प्रथा अभी भी प्रचलित है, वहां यह घटना एक मिसाल कायम कर रही है। विशेषज्ञों का मानना है कि ऐसे प्रयास दहेज लोभी मानसिकता को जड़ से समाप्त करने में सहायक होंगे। परिवारों को चाहिए कि वे धन के बजाय गुणों पर ध्यान दें।

यह विवाह न केवल दो परिवारों का मिलन था, बल्कि सामाजिक जागरूकता का प्रतीक भी बना। दहेज-मुक्त शादियां बढ़ाने के लिए सरकार और सामाजिक संगठनों को ऐसे उदाहरणों को प्रचारित करना चाहिए। इससे नारी सशक्तिकरण को बल मिलेगा और कुरीतियां कम होंगी। क्षेत्रवासियों ने दूल्हे परिवार को बधाई दी और आशा जताई कि यह ट्रेंड पूरे राजस्थान में फैले।

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