महाकुंभ करोड़ों श्रद्धालुओं की आस्था का प्रतीक है। महाकुंभ सिर्फ एक मेला नहीं है बल्कि यह आस्था, परंपरा और हिंदू संस्कृति का संगम है। श्रद्धालुओं के लिए यह एक पवित्र एहसास है। जिसका इंतजार सभी श्रद्धालुओं को बेसब्री से रहता है। इस साल 13 जनवरी से लगने जा रहा महाकुंभ का मेला कई मायनों में बेहद खास होने वाला है। इस बार 144 साल बाद पूर्ण महाकुंभ लग रहा है। सरल शब्दों में समझें तो 12 साल लगातार 12 वर्षों के तक लगने के बाद पूर्ण महाकुंभ लगता है। जो 144 साल बाद आता है। महाकुंभ का आयोजन इस बार प्रयागराज में हो रहा है। इस बार महाकुंभ में क्या कुछ खास होने वाला है। इसके बारे में तो आप सभी जानते ही होंगे लेकिन, क्या आप जानते हैं महाकुंभ का इतिहास वर्षों पुराना है। महाकुंभ से जुड़े कई ऐसे रहस्य हमारे ग्रंथों में छिपे हुए हैं जिन्हें उजागर करना जरूरी है। तो आइए जानते हैं महाकुंभ से जुड़े कुछ रहस्य। साथ ही जानते हैं कब और कहा सबसे पहले हुआ था महाकुंभ का आयोजन।
महाकुंभ का महत्व
महाकुंभ केवल एक धार्मिक मेला नहीं है, बल्कि लाखों लोगों की आस्था का प्रतीक भी है. यह हमारी सांस्कृतिक परंपराओं को सहेजने और धर्म को समाज से जोड़कर रखने का महापर्व भी है. तभी तो लोग दूर-दूर से हर-हर गंगे के जयकारों के साथ आस्था और अद्वतीय भक्ती को समेटे यहां चले आते हैं. जब लोग यहां संगम के घाट पर डुबकी लगाकर मां गंगे का जयकारे बोलते हैं तो मानों समूचा जनसमूह एक हो जाता है. महाकुंभ के दौरान शाही स्नान पर पवित्र नदी में आस्था की डुबकी लगाने और सामर्थ्य के अनुसार दान-दक्षिणा देने से जीवन के सारे दुख-संकट दूर हो जाते हैं.
कुंभ मेलों के प्रकार
महाकुंभ मेला: यह केवल प्रयागराज में आयोजित किया जाता है. यह प्रत्येक 144 वर्षों में या 12 पूर्ण कुंभ मेले के बाद आता है.
पूर्ण कुंभ मेला: यह हर 12 साल में आता है. मुख्य रूप से भारत में 4 कुंभ मेला स्थान यानि प्रयागराज, हरिद्वार, नासिक और उज्जैन में आयोजित किए जाते हैं. यह हर 12 साल में इन 4 स्थानों पर बारी-बारी आता है.
अर्ध कुंभ मेला: इसका अर्थ है आधा कुंभ मेला जो भारत में हर 6 साल में केवल दो स्थानों पर होता है यानी हरिद्वार और प्रयागराज.
कुंभ मेला: चार अलग-अलग स्थानों पर राज्य सरकारों द्वारा हर तीन साल में आयोजित किया जाता है. लाखों लोग आध्यात्मिक उत्साह के साथ भाग लेते हैं.
माघ कुंभ मेला: इसे मिनी कुंभ मेले के रूप में भी जाना जाता है जो प्रतिवर्ष और केवल प्रयागराज में आयोजित किया जाता है. यह हिंदू कैलेंडर के अनुसार माघ के महीने में आयोजित किया जाता है.
नदियों का पवित्र संगम
ज्योतिष देश प्रदेश गैजेट्स हेल्थ बिजनेस ऑटो ट्रेंडिंग दुनिया वीडियो सर है 4,000 हेक्टेयर में मेला बता दें कि महाकुंभ का आयोजन ‘त्रिवेणी संगम’ के तट पर होता है, जिसे यमुना, गंगा और पौराणिक सरस्वती नदियों का पवित्र संगम माना जाता है। धार्मिक मान्यता के अनुसार, जो व्यक्ति सच्चे मन से इस संगम में स्नान करता है, उसे पापों से मुक्ति मिलती है।
वैश्विक मान्यता
साल 2017 में यूनेस्को की मानवता की अमूर्त सांस्कृतिक विरासत की प्रतिनिधि सूची में कुंभ मेले को शामिल किया गया था।
महाकुंभ 2025 शाही स्नान की तिथियां
पहला शाही स्नान- 14 जनवरी 2025, मकर संक्रांति
दूसरा शाही स्नान- 29 जनवरी 2025, मौनी अमावस्या
तीसरा शाही स्नान- 3 फरवरी 2025, सरस्वती पूजा, बसंत पंचमी
इन दिनों के अलावा भी कुंभ में हर दिन स्नान होता है. माना जाता है कि शाही स्नान की शुरुआत 14वीं से 16वीं सदी के बीच हुई थी.
तब मुग़ल शासक भारत में अपनी जड़ें जमाने लग गए थे. दोनों का धर्म अलग-अलग होने की वजह से साधुओं की इन शासकों के साथ संघर्ष की स्थिति बनने लगी थी.
ऐसे ही किसी संघर्ष के बाद कभी दोनों धर्मों के लोगों की बैठक हुई और यह तय हुआ कि दोनों धर्म के लोग एक-दूसरे के धार्मिक आयोजन में दख़ल नहीं देंगे.
हालांकि, यह कब हुआ, इसको लेकर ठोस जानकारी उपलब्ध नहीं है.
बहरहाल, इसके बाद साधुओं को सम्मान देने के लिए कुंभ के दौरान उनको विशेष अनुभव करवाने के मकसद से हाथी, घोड़ों पर बैठकर उनकी पेशवाई निकाली जाने लगी.
स्नान के दौरान साधुओं का ठाठ-बाट राजाओं जैसा होता था, इस वजह से उनके स्नान को शाही स्नान कहा जाता है. तभी से शाही स्नान की परंपरा चली आ रही है.
शाही स्नान में सबसे पहले नागा साधु (निर्वस्त्र साधु) स्नान करते हैं. उनके बाद महामंडलेश्वर और अन्य साधु स्नान करते हैं. श्रद्धालु शाही स्नान के बाद पवित्र नदी में स्नान करते हैं.
कब और कहां लगा था सबसे पहले महाकुंभ ?
महाकुंभ मेला के इतिहास से जुड़े कई रोचक पहलू हैं, जो इसे एक अद्वितीय सांस्कृतिक और धार्मिक आयोजन बनाते हैं। पौराणिक मान्यताओं की मानें तो महाकुंभ मेला की शुरुआत सतयुग से हुई थी। ऐसा कहा जाता है कि इसका आधार समुद्र मंथन की उस कथा में है, जहां अमृत की बूंदें चार पवित्र स्थलों प्रयागराज, हरिद्वार, उज्जैन और नासिक पर गिरी थीं।
महाकुंभ मेला की ऐतिहासिक शुरुआत को लेकर प्राचीन ग्रंथों में सटीक जानकारी नहीं मिलती है। कई ग्रंथों में इसका उल्लेख मिलता है, लेकिन इनमें मेले के पहले आयोजन के समय और स्थान को लेकर स्पष्टता नहीं है। वहीं कुछ विद्वानों का मानना है कि महाकुंभ की परंपरा 850 साल पहले शुरू हुई थी और आज तक हर 12 साल बाद इसका आयोजन प्रयागराज में होता है। वहीं हर 6 साल में अर्द्धकुंभ का आयोजन होता है। महाकुंभ का पहला उल्लेख प्राचीन शिलालेखों में देखने को मिलता है। यह आयोजन न केवल धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि इसके माध्यम से भारतीय संस्कृति और सभ्यता की गहराई को भी समझा जा सकता है। महाकुंभ मेला का इतिहास आज भी कई रहस्यों से भरा हुआ है।
कितना पुराना है महाकुंभ का इतिहास
कुछ ग्रंथों में बताया गया है कि कुंभ मेला का आयोजन 850 साल से भी ज्यादा पुराना है। आदि शंकराचार्य द्वारा महाकुंभ की शुरुआत की गई थी। कुछ कथाओं में बताया गया है कि कुंभ का आयोजन समुद्र मंथन के बाद से ही किया जा रहा है। जबकि कुछ विद्वानों का कहना है कि गुप्त काल के दौरान से ही इसकी शुरुआत हुई थी। लेकिन सम्राट हर्षवर्धन से इसके प्रमाण देखने को मिलते हैं। इसी के बाद शंकराचार्य और उनके शिष्यों द्वारा संन्यासी अखाड़ों के लिए संगम तट पर शाही स्नान की व्यवस्था की गई थी।
महाकुंभ मेले से जुड़ा रहस्य
महाकुंभ की शुरुआत समुद्र मंथन से निकले अमृत कलश के साथ हुई, लेकिन इससे जुडी एक और कथा प्रचलित है। इस कथा के अनुसार जब देवराज इंद्र के पुत्र जयंत कौए के रूप में अमृत कलश लेकर जा रहे थे तो उनकी जीभ पर भी अमृत की कुछ बूंदे लग गई थी। इसी वजह से आज भी कौए की उम्र अन्य पक्षियों की तुलना में लंबी होती है।
जब जयंत अमृत कलश लेकर भाग रहे थे तो कुछ बूंदे प्रयागराज, उज्जैन , हरिद्वार और नासिक में गिरीं जिसकी वजह से यह स्थान पवित्र स्थल बन गए और यहां महाकुंभ का आयोजन होने लगा। वहीं उसी समय इस अमृत की कुछ बूंदें दूर्वा घास पर भी पड़ीं और उसी समय से इसे भी पवित्र माना जाने लगा और पूजा-पाठ में इसका इस्तेमाल होने लगा। यही नहीं इस घास को भगवान गणपति की प्रिय घास माना जाने लगा।
प्रयागराज में हर 12 साल बाद महाकुंभ का आयोजन होता है जिसका महत्व सबसे ज्यादा है। इसका मुख्य कारण यह है कि इसी स्थान पर तीन पवित्र नदियों गंगा, यमुना और सरस्वती का संगम है। हालांकि सरस्वती नदी विलुप्त हो चुकी है, लेकिन आज भी वो प्रयागराज में मौजूद है। ऐसी मान्यता है कि जो व्यक्ति इन तीन नदियों के संगम में शाही स्नान करता है उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है। इसी वजह से प्रयागराज के महाकुंभ का महत्व सबसे ज्यादा है।
महाकुंभ का जिक्र न सिर्फ पौराणिक कथाओं में मिलता है बल्कि ये इतिहास के पन्नों का एक अभिन्न हिस्सा भी है। महाकुंभ से जुड़े कई रहस्यों की जानकारी हम आपको अपने आर्टिकल के जरिये दे रहे हैं। अगर आपका इससे जुड़ा कोई भी सवाल है तो आप आप कमेंट बॉक्स में हमें जरूर बताएं। आपको यह स्टोरी अच्छी लगी हो तो इसे फेसबुक पर शेयर और लाइक जरूर करें। इसी तरह और भी आर्टिकल पढ़ने के लिए जुड़े रहें हरजिंदगी से।
क्यों सिर्फ प्रयागराज में ही लगता है महाकुंभ?
प्रयागराज में लगने वाले महाकुंभ का महत्व अधिक माना गया है। दरअसल, यहां तीन पवित्र नदियों गंगा, यमुना और सरस्वती का संगम है। जिस वजह से यह स्थान अन्य जगहों की तुलना में अधिक महत्वपूर्ण है। बता दें सरस्वती नदी लुप्त हो चुकी हैं लेकिन, वह धरती का धरातल में आज भी बहती हैं। ऐसी मान्यता है कि जो व्यक्ति इन तीन नदियों के संगम में शाही स्नान करता है उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है। इसलिए प्रयागराज में इसका महत्व अधिक माना जाता है।
अब जानते हैं कि कुंभ के आयोजन की तिथि कैसे निर्धारित की जाती है?
किस स्थान पर कुंभ मेले का आयोजन किया जाएगा यह राशियों पर निर्भर करता है. कुंभ मेले में सूर्य और ब्रहस्पति का खास योगदान माना जाता है. जब सूर्य एवं ब्रहस्पति एक राशि से दूसरी राशि में प्रवेश करते हैं तभी कुंभ मेले को मनाया जाता है और इसी आधार पर स्थान ओत तिथि निर्धारित की जाती है.
– जब ब्रहस्पति वर्षभ राशि में प्रवेश करते हैं और सूर्य मकर राशि में तब कुंभ मेले का आयोजन प्रयागराज में किया जाता है.
– जब सूर्य मेष राशि और ब्रहस्पति कुंभ राशि में प्रवेश करते हैं तब कुंभ मेले का आयोजन हरिद्वार में किया जाता है.
– जब सूर्य और ब्रहस्पति का सिंह राशि में प्रवेश होता है तब यह महाकुंभ मेला नासिक में मनाया जाता है.
– जब ब्रहस्पति सिंह राशि में और सूर्य देव मेष राशि में प्रवेश करते हैं तब कुंभ मेले का आयोजन उज्जैन में किया जाता है. यहीं आपको बता दें कि जब सूर्य देव सिंह राशि में प्रवेश करते हैं, इसी कारण उजैन, मध्यप्रदेश में जो कुंभ मनाया जाता है उसे सिंहस्थ कुंभ कहते हैं.
कब से शुरू हो रहा है साल 2025 का महाकुंभ?
साल 2025 का महाकुंभ मेला 13 जनवरी 2025, सोमवार से आरंभ हो रहा है और यह मेला 26 फरवरी 2025 तक चलेगा। यह महाकुंभ मेला प्रयागराज में आयोजित किया जाएगा, जो हिंदू धर्म के महत्वपूर्ण और पवित्र मेलों में से एक है। महाकुंभ का आयोजन हर 12 साल में होता है और यह मेला विशेष रूप से संगम तट पर आयोजित किया जाता है, जहां गंगा, यमुना और अदृश्य नदी सरस्वती आकर मिलती हैं।
इस अवसर पर लाखों श्रद्धालु यहां आते हैं और पवित्र शाही स्नान करके अपने पापों का नाश करते हैं। महाकुंभ के दौरान शाही स्नान की तिथियां विशेष महत्व रखती हैं। इस दौरान 14 जनवरी 2025 को मकर संक्रांति के दिन शाही स्नान होगा, इसके बाद 29 जनवरी यानी मौनी अमावस्या को, 3 फरवरी, बसंत पंचमी को 12 फरवरी, माघ पूर्णिमा को और 26 फरवरी महाशिवरात्रि को भी शाही स्नान आयोजित होंगे। इन तिथियों पर संगम में स्नान करने से विशेष पुण्य की प्राप्ति होती है।
कुंभ में कौन से ग्रह महत्वपूर्ण माने जाते हैं?
सारे नवग्रहों में से सूर्य, चंद्र, गुरु और शनि की भूमिका कुंभ में महत्वपूर्ण मानी जाती है. जब अमृत कलश को लेकर देवताओं और राक्षसों के बीच युद्ध चल रहा था तब कलश की खींचा तानी में चंद्रमा ने अमृत को बहने से बचाया, गुरु ने कलश को छुपाया था, सूर्य देव ने कलश को फूटने से बचाया और शनि ने इंद्र के कोप से रक्षा की. इसीलिए ही तो जब इन ज्र्हों का योग संयोग एक राशि में होता है तब कुंभ मेले का आयोजन होता है.
हर तीसरे वर्ष कुंभ का आयोजन होता है. गुरु ग्रह एक राशि में एक साल तक रहता है और हर राशि में जाने में लगभग 12 वर्षों का समय लग जाता है. इसीलिए हर 12 साल बाद उसी स्थान पर कुंभ का आयोजन किया जाता है. निर्धारित चार स्थानों में अलग-अलग स्थान पर हर तीन साल में कुंभ लगता है. प्रयाग का कुंभ के लिए आशिक महत्व है. 144 वर्ष बाद यहां पर महाकुंभ का आयोजन होता है.
डिजिटल महाकुंभ
इस महाकुंभ में लोगों के भाग लेने की प्रक्रिया को आसान बनाने के लिए उत्तर प्रदेश सरकार ने तमाम सुविधाओं और सेवाओं को डिजिटल टेक्नोलॉजी से जोड़ा है.
इस महाकुंभ को डिजिटल महाकुंभ भी कहा जा रहा है.
यूपी सरकार ने महाकुंभ मेला ऐप, एआई चैटबॉट, क्यूआर कोड से जानकारी और डिजिटल खोया-पाया केंद्र जैसी डिजिटल सेवाओं की शुरुआत की है.
महाकुंभ मेला ऐप 11 से अधिक भाषाओं में उपलब्ध है.
यह ऐप यात्रा की योजना, टेंट सिटी का विवरण, गूगल नेविगेशन, कार्यक्रमों के रियल टाइम अपडेट, पर्यटक गाइड का विवरण, व्यापारिक और आपातकालीन सेवाएं मुहैया कराएगा.
इसके अलावा ये ऐप लाइव अपडेट्स और स्थानीय सेवाओं से जोड़ने में सहायक है.
इसके अलावा महाकुंभ में 10 डिजिटल खोया-पाया केंद्र बनाए गए हैं. ये केंद्र महाकुंभ में परिवार से बिछड़ने वाले लोगों को खोजने में सहायता करेंगे.
इन केंद्रों के ज़रिए महाकुंभ में परिवार से बिछड़ने वालों से जुड़ी जानकारी वहां पर मौजूद सभी एलसीडी पर दिखाई जाएगी.
इसके अलावा सभी सोशल मीडिया पेज पर खोए हुए लोगों की फोटो और वीडियो संदेश पोस्ट किए जाएंगे.
वहीं, श्रद्धालुओं की सुविधा के लिए चार प्रकार के QR कोड लगाए जा रहे हैं. जिसमें हरे रंग का क्यूआर कोड प्रशासनिक सेवाओं के लिए है.
इस क्यूआर कोड को स्कैन करके 28 पेजों का पीडीएफ खुलेगा, जिसमें मंडलायुक्त से लेकर प्रशासनिक अफसरों के नंबर एवं पुलिस स्टेशन के नंबर उपलब्ध होंगे.
महाकुंभ के डिजिटलीकरण के तहत मेला क्षेत्र में मैपिंग के लिए गूगल और यूपी प्रशासन के बीच समझौता हुआ है, जिससे गूगल मैप के जरिए कुंभ में आने वाले लोग मंदिर, संगम तट और अन्य जगहों पर आसानी से जा सकेंगे.
कुंभ क्षेत्र में 328 एआई-सक्षम कैमरे लगाए गए हैं, जिनकी मदद से पूरे कुंभ क्षेत्र की निगरानी की जाएगी.
प्रशासन ने बताया है कि कुंभ में आने वाले लोगों के ठहरने के लिए हमेशा की तरह एक टेंट सिटी भी बनाई जा रही है.
महाकुंभ नगर के एसएसपी राजेश द्विवेदी का कहना है कि कुंभ की निगरानी के लिए एआई तकनीक का इस्तेमाल किया जाएगा.
बिना अनुमति ड्रोन उड़ाने वालों पर कार्रवाई के लिए पुलिस एंटी-ड्रोन तकनीक का उपयोग कर रही है, जिससे ऐसे ड्रोन्स को गिराया जा सकेगा.
कैसे पहुंच सकते हैं प्रयागराज
महाकुंभ का आयोजन उत्तर प्रदेश के प्रयागराज शहर में किया जा रहा है. प्रयागराज में रेल, बस और फ्लाइट के ज़रिए पहुंचा जा सकता है.
इस दौरान कुल 13,000 ट्रेनों का संचालन किया जाएगा. महाकुंभ के लिए भारतीय रेलवे ने मेगा रेलवे प्रोजेक्ट के तहत 4500 करोड़ रुपए खर्च करने का एलान किया है.
महाकुंभ के लिए रेलवे ने तीन हज़ार स्पेशल ट्रेन चलाने की घोषणा की है और मौनी अमावस्या के दिन अलग से 300 ट्रेनें चलाई जाएंगी.
प्रयागराज के रेलवे स्टेशन पर क्यूआर कोड की जैकेट पहने हुए रेलवे के कर्मचारी तैनात किए गए है.
रेलवे कर्मचारियों की जैकेट में लगे क्यूआर कोड को अपने मोबाइल से स्कैन करके लोग यूटीएस ऐप डाउनलोड करके डिजिटल टिकट बुक कर सकते हैं.
यूपी रोडवेज भी लगभग 7000 बसों की सुविधा उपलब्ध कराने जा रहा है.
महाकुंभ मेला सिटी से सबसे पास प्रयागराज बमरौली एयरपोर्ट है, जो कि महाकुंभ मेला सिटी से 22 किलोमीटर की दूरी पर है.
एयरलाइंस एलायंस एयर दिल्ली के अलावा भुवनेश्वर, गुवाहाटी, चंडीगढ़, जयपुर और देहरादून से प्रयागराज के लिए फ्लाइट चलाएगी.
महाकुंभ में स्वास्थ्य सेवाएं
श्रद्धालुओं और साधु-संतों के स्वास्थ्य की देखभाल के लिए पूरे मेला क्षेत्र में कई अस्पताल तैयार किए जा रहे हैं. इन अस्पतालों में डॉक्टरों की तैनाती की जा रही है.
प्रयागराज के सभी रेलवे स्टेशनों पर 24 घंटे एंबुलेंस की सुविधा की विशेष व्यवस्था की गई है.
सेंट्रल हॉस्पिटल की ज़िम्मेदारी संभाल रहे वरिष्ठ चिकित्सा अधिकारी डॉक्टर गौरव दुबे ने आर्मी और मेदांता हॉस्पिटल के साथ मिलकर श्रद्धालुओं की ज़रूरत के हिसाब से कुंभ में स्वास्थ्य सेवाओं का खाका तैयार किया है.
सेंट्रल हॉस्पिटल में आपात स्थितियों के लिए हर तरह की आवश्यक चिकित्सा सुविधाएं उपलब्ध कराई जाएंगी. इसके लिए सभी ज़रूरी मशीनें स्थापित की जा चुकी हैं.
नागा साधुओं की दुनिया
इस महाकुंभ में नागा साधु अपने जप, तप और साधना से चर्चा में बने हुए हैं. 14 जनवरी को पहला अमृत स्नान किया गया और इस दौरान नागा शरीर पर भस्म लगाए रेत लपेटे, नाचते-गाते, डमरू बजाते शामिल हुए. इस दौरान कई नागा साधु अस्त्र-शस्त्र लिए भी नजर आए.
महाकुंभ 2025 में कब बनेंगे नागा साधु
महाकुंभ 2025 में 19 जनवरी को नागा साधु बनाए जाएंगे. प्रक्रिया 17 जनवरी से शुरू हो रही है. यहां पांच गुरु उन्हें विभिन्न वस्त्र देंगे और संन्यास की दीक्षा अखाड़े के आचार्य महामंडलेश्वर देंगे. इसके बाद हवन होगा, और 19 जनवरी की सुबह लंगोटी खोलकर साधु नागा बनाए जाएंगे.वस्त्र पहनने या दिगंबर रूप में रहने का विकल्प दिया जाता है. वस्त्र पहनने वाले नागा अमृत स्नान के दौरान नग्न होकर स्नान करेंगे. महंत रमेश गिरि के अनुसार, महाकुंभ में सभी अखाड़े 1800 से अधिक साधुओं को नागा बनाएंगे, जिनमें सबसे अधिक नागा जूना अखाड़े से बनाए जाएंगे.
कौन सी दो प्रमुख क्रियाएं से महाकुंभ 2025 में मिलेंगे नागा साधु
जवाब:नागा बनाने के दौरान दो प्रमुख क्रियाएं मानी जाती हैं. पहली क्रिया चोटी काटने की होती है, जिसमें गुरु शिष्य का पिंडदान करने के बाद उसके सामाजिक बंधनों को चोटी के माध्यम से काटते हैं. चोटी कटने के बाद, वह शिष्य सामाजिक जीवन में वापस नहीं लौट सकता. दूसरी महत्वपूर्ण क्रिया तंग तोड़ की होती है, जिसे गुरु खुद नहीं करते, बल्कि एक अन्य नागा से करवाते हैं. यह क्रिया नागा बनाने की आखिरी प्रक्रिया मानी जाती है.नागा बनने के बाद ही साधुओं को महामंत्री, सचिव, श्रीमहंत, महंत, थानापति, कोतवाल, पुजारी जैसे पदों पर तैनात किया जाता है.
पहले हेड काउंट से होती थी गणना
जानकारी के मुताबिक 19वीं सदी से कुंभ आने वाले श्रद्धालुओं की गिनती करने का चलन शुरू हुआ था. अंग्रेजी हुकूमत में तो कुंभ की ओर आने वाले अलग-अलग रास्तों पर बैरिकेड लगाकर एक-एक कर लोगों की गिनती की जाती थी. साथ ही कुंभ आने वाले ट्रेनों की टिकटों की गिनती करके भी भीड़ का अनुमान लगाया जाता था. लेकिन तब भीड़ लाखों की संख्या में आती थी जो अब करोड़ों में तब्दील हो चुकी है. ऐसे में गणना के तरीके भी समय के साथ आधुनिक बनाए गए हैं.
हालांकि फिर भी जो भी आंकड़े आते हैं, वह एकदम सटीक हों, ये कह पाना मुश्किल ही होता है. फेस स्कैन के जरिए किसी व्यक्ति की रिपीट काउंटिंग से भले ही बचा जा सकता हो, फिर भी महाकुंभ में आने वाले श्रद्धालुओं का एकदम सटीक डेटा जुटाना लगभग नामुमकिन है. यही वजह है कि तकनीक का सहारा लेकर कुंभ आने वाले लोगों का एक अनुमान ही लगाया जा सकता है.
महाकुंभ में कैसे होती है करोड़ों लोगों की गिनती
प्रयागराज के महाकुंभ में इस बार 45 करोड़ श्रद्धालुओं के पवित्र संगम में स्नान करने का अनुमान है. बीते दो दिनों की ही बात करें तो पहले दो दिन में ही 5 करोड़ से ज्यादा श्रद्धालु कुंभ मेले में आ चुके हैं, जो अपने आप में एक रिकॉर्ड है. लेकिन कुंभ में आने वाली इतनी भारी भीड़ की गिनती आखिर कैसे होती है. साथ ही यह सिर्फ अनुमान है या फिर इसके पीछे किसी सटीक मैथड का भी इस्तेमाल किया जाता है. तो आज आपको बताते हैं कि आखिर दुनिया का सबसे बड़ा धार्मिक आयोजन कहे जाने वाले कुंभ में लोगों की गिनती करने के लिए क्या- क्या तकनीक अपनाई जाती रही हैं.
कैसे हो रही भीड़ की गिनती महाकुंभ 2025 की बात करें तो इस बार का कुंभ बेहद खास है क्योंकि हर 12 साल बाद लगने वाले इस कुंभ में 144 साल बाद ऐसा संयोग बन रहा है, क्योंकि अब तक 12 कुंभ पूरे हो चुके हैं. इसी वजह से इसे महाकुंभ कहा जा रहा है और इसमें आने वाला श्रद्धालुओं की संख्या पहले के किसी भी कुंभ से ज्यादा है. ऐसे में कुंभ मेले में आने वाले श्रद्धालुओं की गिनती के लिए यूपी सरकार ने हाईटेक उपकरणों का सहारा लिया है और इस बार AI बेस्ड कैमरे की मदद से लोगों की गिनती की जा रही है.
सरकार ने महाकुंभ 2025 में आने वाले श्रद्धालुओं की गिनती करने के लिए एक स्पेशल टीम बनाई है और इस टीम का नाम है क्राउड असेसमेंट टीम. यह टीम रियल टाइम बेसिस पर महाकुंभ में आने वाले लोगों की गिनती कर रही है और इसके लिए ऐसे खास कैमरों की मदद ली जा रही है जो आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस की मदद से लोगों की गिनती कर रहे हैं.
लोगों को स्कैन कर रहे हैं, यह कैमरे महाकुंभ में आने वाले लोगों के चेहरों को स्कैन करते हैं और वहां मौजूद भीड़ के हिसाब से यह अनुमान लगाते हैं कि कितने घंटे में कितने लाख लोग महाकुंभ के मेला क्षेत्र में आए हैं. इस समय महाकुंभ के पूरे मेला क्षेत्र में ऐसे 1800 कैमरे लगे हुए हैं. इसके अलावा यही टीम लोगों की गिनती करने के लिए ड्रोन की मदद ले रही है जिनसे एक निश्चित क्षेत्र में भीड़ के घनत्व को मापा जाता है और यह पता लगाया जाता है कि एक दिन में कितने लोग महाकुंभ के आयोजन में शामिल हो रहे हैं. कितने लोगों ने संगम में स्नान किया है.
विदेशी भक्त
महाकुंभ मेला न केवल हिंदुओं को बल्कि दुनियाभर में मौजूद श्रद्धालुओं को आकर्षित करता है, जहां सिर्फ भारतीय ही नहीं बल्कि विदेशी भी आते हैं।