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Sunday, October 26, 2025

बिहार में कांग्रेस का ‘ट्रबलशूटर’: अशोक गहलोत ने महागठबंधन को फिर जोड़ा, दिखी पुरानी राजनीतिक चालाकी

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बिहार चुनाव से पहले कांग्रेस ने अपने सबसे अनुभवी और रणनीतिक चेहरे अशोक गहलोत को मैदान में उतारकर बड़ा दांव खेला है। गहलोत को महागठबंधन में बढ़ती दरारों को भरने और सभी सहयोगी दलों को एकजुट करने की जिम्मेदारी सौंपी गई। उनकी एंट्री के कुछ ही घंटों बाद महागठबंधन ने संयुक्त प्रेस कॉन्फ्रेंस कर एकजुटता का संदेश दिया, जिससे यह साबित हो गया कि गहलोत अभी भी पार्टी के लिए सबसे भरोसेमंद ‘संकटमोचक’ हैं।

राजस्थान के पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत अपने सादगीपूर्ण व्यवहार और मृदुभाषी अंदाज के लिए जाने जाते हैं, लेकिन उनके भीतर एक गहरी राजनीतिक समझ और कूटनीतिक सोच छिपी है। यही वजह है कि जब भी कांग्रेस किसी पेचीदा स्थिति में फंसी, गहलोत को ही मैदान में उतारा गया। बिहार में भी वही स्थिति है, जहां सीट बंटवारे और नेतृत्व के मुद्दे पर महागठबंधन में असहमति बढ़ रही थी।

गहलोत के अनुभव का लाभ पार्टी पहले भी कई बार उठा चुकी है। 2017 में अहमद पटेल के राज्यसभा चुनाव के दौरान जब कांग्रेस में क्रॉस वोटिंग का संकट खड़ा हुआ था, तब गहलोत की रणनीति ने पार्टी को बचाया था। उन्होंने देर रात सुप्रीम कोर्ट तक जाने का सुझाव दिया और अहमद पटेल की जीत सुनिश्चित की। 2022 के गुजरात विधानसभा चुनाव में उन्होंने ‘सॉफ्ट हिंदुत्व’ का कार्ड खेला, ताकि कांग्रेस को हिंदू वोट बैंक में सेंध लगाने का मौका मिले। वे अक्सर कहते थे, “हम हिंदू नहीं हैं क्या? क्या सिर्फ वे ही हिंदू हैं?”—इस वाक्य से उन्होंने भाजपा के नैरेटिव को चुनौती दी थी।

हरियाणा, महाराष्ट्र और अब बिहार—हर बार गहलोत को उस राज्य में भेजा गया, जहां पार्टी को अंदरूनी असहमति का सामना था। उनकी शांत और संतुलित कार्यशैली नेताओं के बीच भरोसा पैदा करती है। यही कारण है कि जब बिहार में महागठबंधन की गांठें खुलने लगीं, तो कांग्रेस ने फिर से गहलोत पर भरोसा जताया।

राजनीति के इस शतरंज में गहलोत हमेशा ठंडे दिमाग से खेलते हैं। वे जानते हैं कब किससे बात करनी है और किस समय कौन-सा संदेश देना है। उनके विरोधी भी उनकी रणनीतिक सोच की दाद देते हैं। भंवरी देवी केस हो या सचिन पायलट के साथ चल रही तनातनी—गहलोत ने हर बार बाज़ी अपने पक्ष में पलटी है।

कांग्रेस के भीतर भी गहलोत का प्रभाव अभी कायम है। पार्टी नेतृत्व भले ही युवा चेहरों को आगे लाने की बात करता हो, लेकिन जब बात संकट प्रबंधन की आती है, तो गहलोत की भूमिका अपरिहार्य बन जाती है। बिहार में उनका मिशन अब महागठबंधन को मजबूती देना और भाजपा को कड़ी टक्कर दिलाना है।

अशोक गहलोत ने एक बार फिर साबित किया है कि राजनीति केवल भाषणों से नहीं, बल्कि ठोस रणनीति, अनुभव और सही समय पर लिए गए फैसलों से जीती जाती है।

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