डायरेक्टर- लक्ष्मण उतेकर
एक्टर्स- विकी कौशल, अक्षय खन्ना, रश्मिका मंदन्ना, विनीत कुमार सिंह
रेटिंग- 2.5/5 स्टार
2018 में करण जौहर ने ‘तख्त’ नाम की फिल्म का ऐलान किया था, जिसमें ऐतिहासिक ड्रामा के जरिए औरंगज़ेब और दारा शिकोह की कहानी पेश की जानी थी। इस फिल्म का बजट और भारी-भरकम स्टारकास्ट दर्शकों में काफी उम्मीदें जगा रही थीं, लेकिन महामारी के बाद फिल्म रुक गई। सात साल बाद एक नई फिल्म आई है, जिसका नाम है ‘छावा’। इस फिल्म में छत्रपति शिवाजी महाराज के बेटे, छत्रपति संभाजी महाराज के जीवन को दर्शाया गया है, और इस फिल्म में मुख्य खलनायक के रूप में औरंगज़ेब हैं। विकी कौशल की दमदार परफॉर्मेंस के साथ यह फिल्म मराठा साम्राज्य और उनके संघर्ष की एक शानदार कहानी प्रस्तुत करती है। हालांकि, फिल्म के कुछ हिस्सों में खामियां भी हैं, लेकिन फिर भी यह दर्शकों को अपना दिल जीतने में सफल रहती है।
कहानी: एक संघर्ष और संघर्ष के बीच
‘छावा’ की कहानी छत्रपति शिवाजी महाराज की मृत्यु के बाद शुरू होती है। औरंगज़ेब को लगता है कि अब मराठा साम्राज्य कमजोर हो गया है और उसे हराकर दक्खन पर कब्जा किया जा सकता है। लेकिन उसकी राह में छत्रपति संभाजी महाराज खड़े होते हैं। औरंगज़ेब इस चुनौती को स्वीकार करता है और कसम खाता है कि जब तक वह संभाजी महाराज को हराकर नहीं मारेगा, तब तक अपना मुकुट नहीं पहनेगा। इस संघर्ष को फिल्म में प्रभावशाली तरीके से प्रस्तुत किया गया है, जिसमें औरंगज़ेब की क्रूरता और संभाजी महाराज की बहादुरी को दिखाया गया है।
फिल्म में ऐतिहासिक घटनाओं और युद्धों को बड़े पर्दे पर बहुत ही भव्यता से दिखाया गया है। हालांकि, फिल्म की ऐतिहासिक एक्यूरेसी में कुछ भिन्नताएं हो सकती हैं, लेकिन एक सामान्य दर्शक के लिए यह फिल्म एक शानदार ऐतिहासिक ड्रामा के रूप में प्रस्तुत की गई है।
एक्शन और विकी कौशल का दमदार प्रदर्शन
फिल्म के शुरुआती 15 मिनट में विकी कौशल को एक जबरदस्त इंट्रोडक्ट्री सीन मिलता है, जो उनके करियर का सबसे मासी सीन साबित होता है। इस सीन में विकी कौशल को सिर्फ चिल्लाते हुए दिखाया जाता है, जिससे छत्रपति संभाजी महाराज की निडरता और आक्रामकता का एहसास होता है। हालांकि, यह सीन थोड़ा ओवर द टॉप लगता है, क्योंकि बैकग्राउंड स्कोर इतना तेज है कि दर्शकों को कानों पर हाथ रखने की ज़रूरत पड़ती है।
फिल्म में विकी का अभिनय काफी मजबूत है। उन्होंने छत्रपति संभाजी महाराज के किरदार को पूरी तरह से जीवंत किया है। उनकी शारीरिक मेहनत और मांसपेशियों के साथ फिल्म की प्रभावशाली एक्शन सीक्वेंस में नजर आते हैं। हालांकि, यह फिल्म विकी के करियर की सबसे ज्यादा मसालेदार फिल्म हो सकती है, लेकिन मानसिक रूप से इसे चुनौतीपूर्ण नहीं कहा जा सकता है।
रश्मिका मंदन्ना का कमजोर प्रदर्शन
रश्मिका मंदन्ना, जो फिल्म में एक महत्वपूर्ण किरदार में हैं, अपनी भूमिका में पूरी तरह से फिट नहीं बैठतीं। उनका मराठी एक्सेंट कमजोर है और अभिनय में भी वह प्रभाव छोड़ने में सफल नहीं हो पाई हैं। फिल्म में उनकी मौजूदगी जितनी बार भी होती है, उतना ही फिल्म को नुकसान पहुंचता है। उनका किरदार पूरी तरह से अधूरा सा लगता है, और उनका अभिनय फिल्म के कुल प्रभाव को नकारात्मक रूप से प्रभावित करता है।
औरंगज़ेब: अक्षय खन्ना की प्रभावशाली भूमिका
औरंगज़ेब का किरदार इस फिल्म में बेहद प्रभावशाली है। फिल्म में वह बहुत कम शब्दों में बात करते हैं, लेकिन उनकी गंभीरता और क्रूरता दर्शकों के दिल में बैठ जाती है। अक्षय खन्ना ने इस किरदार को बखूबी निभाया है। उनका शारीरिक भाषा और उनकी चुप्पी से ही औरंगज़ेब की क्रूरता को दर्शाया गया है। वह जितने कम शब्द बोलते हैं, उतने ही अधिक प्रभावशाली लगते हैं। अक्षय की इस भूमिका के लिए उनकी जमकर तारीफ की जानी चाहिए, क्योंकि उनका प्रदर्शन फिल्म के सबसे बेहतरीन हिस्सों में से एक है।
क्लाइमेक्स और फिल्म का रिडेंप्शन आर्क
फिल्म का क्लाइमेक्स, जो छत्रपति संभाजी महाराज के जीवन के अंतिम युद्ध पर आधारित है, फिल्म का सबसे मजबूत हिस्सा साबित होता है। इस युद्ध सीक्वेंस में फिल्म के निर्माता ने अपनी पूरी मेहनत झोंक दी है। कैमरा वर्क, एक्शन और अभिनय सब कुछ शानदार है। यह 15-20 मिनट फिल्म की लाज बचाते हैं और दर्शकों को पूरी फिल्म में जो हल्का सा अधूरापन महसूस हो रहा था, उसे खत्म कर देते हैं। हालांकि, फिल्म के अंत को इतना खींचा गया है कि वह कुछ हद तक बोझिल बन जाता है।
फिल्म का संदेश
‘छावा’ का सबसे अच्छा पहलू यह है कि वह किसी एजेंडा को आगे बढ़ाने की कोशिश नहीं करती। फिल्म में एक सीन है, जहां छत्रपति संभाजी महाराज कहते हैं कि उनकी लड़ाई किसी धर्म के लोगों से नहीं है, बल्कि उन लोगों से है जो उनके ‘स्वराज’ के विचार के खिलाफ हैं। फिल्म में यह संदेश बहुत साफ और स्पष्ट रूप से दिया गया है कि राजनीति या धर्म से ऊपर उठकर केवल स्वतंत्रता की लड़ाई का महत्व है।
अगर हम फिल्म को समग्र रूप से देखें तो ‘छावा’ एक मसालेदार ऐतिहासिक फिल्म है, जो कुछ खामियों के बावजूद दर्शकों को एंटरटेन करने में सफल होती है। विकी कौशल का अभिनय शानदार है, अक्षय खन्ना का औरंगज़ेब की भूमिका में प्रदर्शन काबिले तारीफ है, और फिल्म का क्लाइमेक्स इसे सशक्त बनाता है। हालांकि, कुछ कमजोर अभिनय और लंबी खींची गई कहानी के बावजूद, यह फिल्म एक अच्छा एंटरटेनमेंट पैकेज देती है। ‘छावा’ हार्मलेस एंटरटेनमेंट है, जो कुछ बेहतर होने की उम्मीद दिलाती है, लेकिन अंत में यही फिल्म बनी रहती है जो उम्मीदों से थोड़ी कम ही साबित होती है।
