सोमवार को भारतीय रुपये में भारी गिरावट दर्ज की गई, जिससे यह अमेरिकी डॉलर के मुकाबले 87.17 के स्तर पर बंद हुआ। बाजार खुलते ही रुपये में गिरावट आई और यह 87.29 तक पहुंच गया, जो अब तक का सबसे निचला स्तर है। रुपये की इस कमजोरी से न केवल शेयर बाजार प्रभावित हुआ, बल्कि महंगाई बढ़ने का भी खतरा पैदा हो गया है।
रुपये में गिरावट क्यों?
भारतीय मुद्रा में गिरावट के पीछे कई कारण हैं। सबसे बड़ा कारण अमेरिकी डॉलर की बढ़ती मांग है, जिससे केवल रुपया ही नहीं, बल्कि अन्य देशों की मुद्राएं भी कमजोर हुई हैं। इसके अलावा, विदेशी निवेशकों द्वारा भारतीय शेयर बाजार से पैसा निकालने से भी रुपये पर दबाव बना हुआ है।
अमेरिका में डोनाल्ड ट्रंप की टैरिफ नीति भी रुपये की कमजोरी का एक कारण मानी जा रही है। ट्रंप ने कई देशों, खासकर चीन, कनाडा और यूरोपियन यूनियन पर नए आयात शुल्क लगाए हैं। इससे अंतरराष्ट्रीय बाजार में अनिश्चितता बढ़ी है, जिससे भारतीय रुपये पर असर पड़ा है।
रुपये में गिरावट रोकने के उपाय
सरकार और भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) रुपये की गिरावट को रोकने के लिए कई कदम उठा सकते हैं:
विदेशी निवेश आकर्षित करना – अगर विदेशी निवेशक भारतीय बाजार में निवेश बढ़ाते हैं, तो रुपये की स्थिति मजबूत हो सकती है।
आयात पर निर्भरता कम करना – भारत अधिकतर वस्तुएं, खासकर कच्चा तेल, आयात करता है। आयात कम करने और निर्यात बढ़ाने से रुपये को मजबूती मिल सकती है।
विदेशी मुद्रा भंडार का इस्तेमाल – RBI अपने डॉलर भंडार का उपयोग कर रुपये को स्थिर कर सकता है।
रुपये की कमजोरी का असर
रुपये की गिरावट से आम जनता पर सीधा असर पड़ सकता है। आयात महंगा होने से पेट्रोल-डीजल की कीमतें बढ़ सकती हैं, जिससे ट्रांसपोर्ट और रोजमर्रा की चीजें महंगी हो सकती हैं। इससे महंगाई दर बढ़ने का खतरा भी है।
हालांकि, वित्त मंत्रालय ने कहा है कि रुपये की यह गिरावट चिंता का विषय नहीं है, और RBI स्थिति को संभाल रहा है। लेकिन अगर रुपये की गिरावट जारी रहती है, तो सरकार को ठोस कदम उठाने की जरूरत होगी।
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