दिल्ली विधानसभा चुनावों में प्रवेश वर्मा, जो बीजेपी के एक प्रमुख नेता और पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष के करीबी रहे हैं, को मुख्यमंत्री पद के दावेदार के रूप में देखा जा रहा था। हालांकि, उनके मुख्यमंत्री बनने का सपना कभी पूरा नहीं हो सका। इस असफलता के पीछे एक महत्वपूर्ण कारण जाट समुदाय का प्रभाव और बीजेपी की राजनीति के भीतर की जटिलताएं थीं। क्या जाट फैक्टर ही उनकी असफलता का कारण बना? आइए इस मुद्दे को समझते हैं।
जाट फैक्टर: दिल्ली की राजनीति में प्रभाव
दिल्ली में जाट समुदाय का प्रभाव काफी मजबूत रहा है, खासकर पश्चिमी दिल्ली में। जाट समाज का एक बड़ा वोट बैंक बीजेपी के लिए अहम है, लेकिन इसी समुदाय से जुड़े हुए प्रवेश वर्मा के लिए यह राजनीति में एक चुनौती बन गया। बीजेपी ने हमेशा जातिगत समीकरणों का ध्यान रखते हुए राजनीति की है, और दिल्ली के मुख्यमंत्री पद के लिए उनके नाम की संभावना को लेकर पार्टी के अंदर से ही विरोध की आवाजें उठने लगीं।
प्रवेश वर्मा को जाट समुदाय का समर्थन मिलने की पूरी उम्मीद थी, लेकिन इसी समुदाय के भीतर बीजेपी के भीतर सत्ता संघर्ष और जातिगत समीकरणों को ध्यान में रखते हुए पार्टी के शीर्ष नेताओं ने उनके नाम को प्राथमिकता नहीं दी। इससे यह साफ हो गया कि बीजेपी की रणनीति में कभी भी एक ठोस जाट नेतृत्व को प्रमोट करने की योजना नहीं थी, जबकि पार्टी ने हमेशा ही दिल्ली के जातीय समीकरणों को महत्व दिया।
बीजेपी का केंद्रीयकरण और स्थानीय नेताओं की अनदेखी
नरेंद्र मोदी, अमित शाह, और जेपी नड्डा के नेतृत्व में बीजेपी ने पार्टी के केंद्रीयकरण की नीति को अपनाया है। इसका मतलब यह है कि पार्टी के शीर्ष नेता दिल्ली जैसे राज्यों में भी केंद्रीय निर्णय लेने की प्रक्रिया में अधिकतम प्रभाव डालते हैं। स्थानीय नेताओं को सत्ता में हिस्सेदारी या पूरी स्वतंत्रता नहीं दी जाती। यही वजह है कि प्रवेश वर्मा को मुख्यमंत्री बनने का मौका नहीं मिला। दिल्ली जैसे राज्य में, जहां जातीय समीकरण और स्थानीय राजनीति का बड़ा प्रभाव है, बीजेपी का केंद्रीय नेतृत्व अपनी राजनीति को अधिक महत्व देता है, न कि राज्य के नेताओं को।
प्रवेश वर्मा, जो एक प्रभावशाली नेता माने जाते थे, के लिए यह स्थिति असहज बन गई। उनके मुख्यमंत्री बनने के समर्थन में पार्टी में पर्याप्त उत्साह नहीं था। इसका कारण पार्टी की रणनीतिक कमियां थीं, जो कि जाट फैक्टर और स्थानीय नेतृत्व को नजरअंदाज करने की नीति से जुड़ी थीं।
विकास के मुद्दों की अनदेखी
दिल्ली विधानसभा चुनावों में आम आदमी पार्टी (AAP) ने हमेशा विकास, शिक्षा, स्वास्थ्य और बुनियादी ढांचे जैसे मुद्दों को प्रमुखता दी। अरविंद केजरीवाल ने दिल्लीवासियों को यह संदेश दिया कि उनकी सरकार केवल राजनीति और जातिवाद पर नहीं, बल्कि असल मुद्दों पर ध्यान देगी। जबकि बीजेपी ने अपना ध्यान अधिकतर सांप्रदायिक और हिन्दुत्व आधारित राजनीति पर रखा, जो दिल्ली जैसे विविधतापूर्ण शहर के लिए कभी पर्याप्त नहीं हो सकता था।
बीजेपी के केंद्रीय नेतृत्व ने कभी भी दिल्ली में विकास के मुद्दे पर ठोस कदम नहीं उठाए। इस वजह से, बीजेपी की छवि विकास से अधिक जुड़ी हुई नहीं थी, और इसी कारण केजरीवाल की आम आदमी पार्टी को लगातार बढ़त मिली।
