नीमकाथाना जिले और सीकर संभाग को पुनः बहाल करने की मांग को लेकर इलाके के युवाओं और वकीलों में गुस्सा बढ़ता जा रहा है। राज्य सरकार द्वारा नीमकाथाना को जिला और सीकर को संभाग से बाहर किए जाने के बाद से यहां के लोग खासकर युवा वर्ग में आक्रोश देखा जा रहा है। इस आंदोलन को लेकर अब युवाओं ने 30 जनवरी को नीमकाथाना में चक्का जाम का ऐलान किया है, जबकि वकील भी इस मुद्दे को लेकर विरोध जता रहे हैं।
30 जनवरी को चक्का जाम का ऐलान
युवाओं के नेतृत्व में एक संगठन ने नीमकाथाना जिले की बहाली के लिए 30 जनवरी को पूरे शहर में चक्का जाम करने का फैसला लिया है। संगठन ने इस संदर्भ में एक बैठक आयोजित की, जिसमें युवा नेताओं ने अपनी रणनीति तैयार की। संगठन के शशि पाल भाकर ने कहा कि विभिन्न मंत्रियों के बयान के बावजूद, जिन्होंने यह कहा था कि जिला हटाने के बाद कोई प्रदर्शन नहीं होगा, युवा शक्ति मैदान में उतर चुकी है। उन्होंने स्पष्ट किया कि नीमकाथाना में अब तक कई बड़े आंदोलन हुए हैं, जिनमें बाइक रैलियां भी निकाली गईं, लेकिन सरकार ने फिर भी नीमकाथाना को जिला नहीं बहाल किया।
महेंद्र मांडिया, जो संगठन से जुड़े हैं, ने भी इस बात पर गहरी नाराजगी व्यक्त की और कहा कि अब 30 जनवरी को नीमकाथाना के हर हिस्से में चक्का जाम किया जाएगा। मांडिया ने चेतावनी दी कि यदि सरकार ने इस मुद्दे का समाधान नहीं किया, तो भविष्य में उग्र प्रदर्शन होंगे और इसकी जिम्मेदारी सरकार की होगी। उन्होंने बताया कि चक्का जाम को सफल बनाने के लिए समन्वय समिति बनाई गई है और छात्र राजनीति से जुड़े छात्र नेताओं से भी संपर्क किया जा रहा है। इसके अलावा, प्रदर्शन की व्यवस्थित और कानूनी प्रक्रिया को लेकर एक लीगल कमेटी भी गठित की गई है।
वकीलों का भी विरोध जारी
नीमकाथाना में वकीलों का विरोध भी लगातार जारी है। कोर्ट कैंपस से वकीलों ने एक आक्रोश रैली निकाली, जो कलेक्ट्रेट तक पहुंची। रैली में शामिल वकीलों ने 10 मिनट तक सड़क पर बैठकर अपनी मांगों को जोरदार तरीके से उठाया। वकीलों का मुख्य अनुरोध था कि नीमकाथाना जिला और सीकर संभाग को पुनः बहाल किया जाए। इसके बाद, वकीलों ने एडीएम को मुख्यमंत्री के नाम एक ज्ञापन सौंपा, जिसमें वे अपनी मांग को दोहराते हुए सरकार से तत्काल कार्रवाई की अपील कर रहे थे।
बार संघ के अध्यक्ष सत्यनारायण यादव ने कहा कि यह दूसरी बार है जब बार संघ ने इस मुद्दे पर रैली निकाली है, लेकिन फिर भी राज्य सरकार ने कोई कदम नहीं उठाया है। उन्होंने यह भी बताया कि पिछले 24 दिनों से वकील अपनी अनिश्चितकालीन हड़ताल पर हैं। यादव ने सरकार से यह मांग की कि जब तक नीमकाथाना जिले और सीकर संभाग को पुनः बहाल नहीं किया जाएगा, तब तक हड़ताल जारी रहेगी।
सरकार पर दबाव बढ़ा
नीमकाथाना को जिला बनाने की मांग केवल युवाओं और वकीलों तक सीमित नहीं है, बल्कि यह पूरे क्षेत्र के लोगों का एक सामूहिक आंदोलन बन चुका है। क्षेत्रीय नेताओं का मानना है कि नीमकाथाना का जिला दर्जा वापस मिलने से ना केवल प्रशासनिक कार्यों में सुविधा होगी, बल्कि विकास कार्यों में भी तेजी आएगी। इसके अलावा, नीमकाथाना की बढ़ती जनसंख्या और यहां की अर्थव्यवस्था को देखते हुए इसे जिला बनाना स्थानीय लोगों की बुनियादी आवश्यकता बन चुकी है।
नीमकाथाना की यह समस्या अब एक गंभीर राजनीतिक मुद्दा बन चुकी है और सरकार के लिए इसे नजरअंदाज करना मुश्किल हो सकता है। पिछले कुछ महीनों में स्थानीय लोग बार-बार सरकार से इस मुद्दे को लेकर गुहार लगा चुके हैं, लेकिन अभी तक कोई सकारात्मक कदम नहीं उठाया गया है। इस पर कांग्रेस पार्टी और भारतीय जनता पार्टी दोनों के स्थानीय नेता भी बयान दे चुके हैं, लेकिन कोई ठोस कदम देखने को नहीं मिला है।
आंदोलन का भविष्य और राजनीतिक दांवपेंच
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि इस मुद्दे को लेकर सरकार को जल्द ही कोई ठोस निर्णय लेना होगा, अन्यथा यह आंदोलन और उग्र हो सकता है। नीमकाथाना में बढ़ता विरोध और चक्का जाम जैसे कदम, राज्य सरकार के लिए एक चेतावनी हो सकते हैं। यदि सरकार ने इस मुद्दे का समाधान जल्दी नहीं निकाला, तो यह विरोध विधानसभा चुनावों के दौरान भी एक बड़ा मुद्दा बन सकता है, जिससे आगामी चुनावों में पार्टी को नुकसान हो सकता है।
वहीं, विपक्षी दलों ने इस मुद्दे को लेकर सरकार पर निशाना साधना शुरू कर दिया है। उनका कहना है कि यह राज्य सरकार की नाकामी को दिखाता है, जो जनता की बुनियादी मांगों को नजरअंदाज कर रही है। विपक्षी नेता भी इस मुद्दे को अपने चुनाव प्रचार का हिस्सा बना सकते हैं, जिससे सरकार को इस पर पुनर्विचार करने के लिए मजबूर किया जा सकता है।
निष्कर्ष
नीमकाथाना जिला और सीकर संभाग की बहाली को लेकर हो रहे विरोधों ने यह स्पष्ट कर दिया है कि स्थानीय जनता, खासकर युवा और वकील, इस मुद्दे पर पूरी तरह से सक्रिय हैं। 30 जनवरी को प्रस्तावित चक्का जाम और वकीलों की अनिश्चितकालीन हड़ताल, राज्य सरकार के लिए एक बड़ा संकेत हैं कि नीमकाथाना के लोग अपनी मांगों को लेकर बिल्कुल गंभीर हैं। अब देखना यह होगा कि सरकार इस मुद्दे का समाधान कैसे निकालती है, क्योंकि यह केवल प्रशासनिक नहीं, बल्कि राजनीतिक रूप से भी एक संवेदनशील मुद्दा बन चुका है।