राजस्थान के बहुचर्चित फोन टैपिंग कांड में मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के पूर्व ओएसडी लोकेश शर्मा ने बड़ा खुलासा किया है। उन्होंने गहलोत को पूरे मामले का जिम्मेदार ठहराते हुए इसे कांग्रेस नेता सचिन पायलट की छवि खराब करने की एक साजिश बताया। लोकेश शर्मा ने कहा कि गहलोत ने पहले उन्हें विश्वास दिलाया, लेकिन जब मामला गंभीर हुआ, तो वे खुद को इससे दूर कर गए। अब शर्मा ने सरकारी गवाह बनने की बात कहते हुए इस मामले की पूरी सच्चाई को सामने लाने का निर्णय लिया है।
लोकेश शर्मा का यह बयान टोंक में एक कार्यक्रम के दौरान मीडिया से बातचीत में आया, जहां उन्होंने फोन टैपिंग कांड के संदर्भ में अपनी भूमिका और सरकार की ओर से दिए गए निर्देशों पर प्रकाश डाला।
गहलोत ने भरोसा दिलाया, लेकिन खुद को किया अलग
लोकेश शर्मा ने कहा, “जब 2020 में राजस्थान में सियासी संकट आया, तब यह घटना घटी थी। उस वक्त तत्कालीन मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने मुझे पेन ड्राइव दी और कहा कि इसे मीडिया में सर्कुलेट करना है। चूंकि मैं ओएसडी (मीडिया) के रूप में उनके साथ काम कर रहा था, मेरी नैतिक जिम्मेदारी थी कि मैं आदेशों का पालन करता।” शर्मा ने आगे कहा कि बाद में केंद्रीय मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत ने इस मामले में एफआईआर दर्ज कराई और अब वे क्राइम ब्रांच के सवालों का जवाब दे रहे हैं।
लोकेश शर्मा ने इस पूरे घटनाक्रम को लेकर गहलोत पर गंभीर आरोप लगाए। उन्होंने कहा, “गहलोत ने मुझे भरोसा दिलाया था कि वे मुझे कुछ नहीं होने देंगे, चाहे सुप्रीम कोर्ट क्यों न जाना पड़े। लेकिन विधानसभा चुनाव हारने के बाद, गहलोत ने खुद को इस मामले से अलग कर लिया। अब मुझे उस काम के लिए दोषी ठहराया जा रहा है, जो मैंने किया ही नहीं। पिछले तीन साल से मैं दिल्ली क्राइम ब्रांच के सवालों का जवाब दे रहा हूं, जबकि मेरा परिवार प्रताड़ित हो रहा है।”
पायलट को टारगेट करने की साजिश का खुलासा
लोकेश शर्मा ने इस फोन टैपिंग कांड से जुड़े सबूत क्राइम ब्रांच को सौंपे हैं और बताया कि फोन टैपिंग का काम उनके स्तर पर नहीं हो सकता था, क्योंकि वे उस समय संबंधित विभाग की अथॉरिटी नहीं थे। उन्होंने यह भी कहा कि फोन टैपिंग एक सरकारी प्रक्रिया के तहत की जाती है, जिसमें पुलिस विभाग, चीफ सेक्रेटरी और अन्य संबंधित अधिकारियों की जानकारी होती है।
जब मीडिया ने उनसे पूछा कि क्या इस मामले में सचिन पायलट को टारगेट करने की कोशिश की गई थी, तो उन्होंने इसका सीधा और स्पष्ट जवाब दिया। शर्मा ने कहा, “यह एक कवायद या षड़यंत्र था, जिसका मकसद पायलट और शेखावत की छवि को खराब करना था।” उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि उनका इस मामले में कोई लेना-देना नहीं है और वे सरकार के निर्देशों के तहत कार्य कर रहे थे।
लोकेश शर्मा का सरकारी गवाह बनने का निर्णय
लोकेश शर्मा ने अपने बयान में यह भी कहा कि उन्होंने अदालत से सरकारी गवाह बनने की अनुमति मांगी है ताकि वे पूरे मामले की सच्चाई को सामने ला सकें। उन्होंने कहा, “मेरी भूमिका पूरी तरह से स्पष्ट है। मैं किसी भी प्रकार की साजिश का हिस्सा नहीं था, और अब मैं यह सुनिश्चित करूंगा कि पूरे मामले की सच्चाई जनता के सामने आए।”
शर्मा ने कहा कि इस मामले में न्याय पाने का अधिकार सिर्फ उनका नहीं, बल्कि उन सभी लोगों का है, जिनका नाम बिना किसी कारण घसीटा गया। उनका मानना है कि इस मामले के पीछे राजनीतिक ताकतें हैं, जिन्होंने इसे साजिश के रूप में इस्तेमाल किया।
राजस्थान सियासी संकट और फोन टैपिंग कांड
राजस्थान में 2020 में सियासी संकट गहरा गया था, जब मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और उनके करीबी सहयोगी सचिन पायलट के बीच मतभेद खुलकर सामने आए। इस संकट के दौरान, फोन टैपिंग कांड ने और तूल पकड़ा था, जब यह दावा किया गया कि पायलट और अन्य नेताओं की जासूसी की जा रही थी। इस विवाद के बाद पायलट और गहलोत के बीच की खाई और गहरी हो गई, और पायलट को लगातार अपने राजनीतिक कद को लेकर सवालों का सामना करना पड़ा।
लोकेश शर्मा का बयान इस मामले के नए पहलू को उजागर करता है, जिसमें उन्होंने इसे केवल एक व्यक्तिगत विवाद से ज्यादा, एक राजनीतिक साजिश का हिस्सा बताया है। शर्मा के बयान से यह भी साफ होता है कि यह मामला अब केवल एक कानूनी लड़ाई नहीं, बल्कि राज्य की सियासत का अहम मुद्दा बन चुका है।
निष्कर्ष
लोकेश शर्मा के बयान ने राजस्थान के राजनीतिक परिप्रेक्ष्य में नया मोड़ लाया है। उनका कहना है कि इस मामले में जो कुछ भी हुआ, उसमें उनका कोई व्यक्तिगत योगदान नहीं था और उन्होंने जो भी किया, वह सरकार के निर्देशों के तहत किया। अब, उनके सरकारी गवाह बनने की घोषणा से यह साफ है कि वह पूरी सच्चाई सामने लाने के लिए प्रतिबद्ध हैं। इस घटनाक्रम के बाद, यह देखना होगा कि क्या सरकार और संबंधित एजेंसियां इस मामले की पूरी जांच कर पाती हैं और यह मुद्दा किस दिशा में जाता है।