बदलापुर यौन उत्पीड़न मामले में आरोपी अक्षय शिंदे की कथित मुठभेड़ की मजिस्ट्रेट जांच में उसकी मौत के लिए पांच पुलिसकर्मियों को जिम्मेदार ठहराया गया है, यह खुलासा सोमवार को बॉम्बे हाईकोर्ट ने किया। अदालत ने सरकार को रिपोर्ट के आधार पर एफआईआर दर्ज करने का निर्देश दिया और यह स्पष्ट करने को कहा कि जांच कौन सी एजेंसी करेगी।
न्यायमूर्ति रेवती मोहिते डेरे और नीला गोखले की पीठ द्वारा आंशिक रूप से पढ़े गए निष्कर्षों में कहा गया है कि पुलिस द्वारा निजी बचाव का औचित्य संदेह के घेरे में है। जांच में इस बात पर प्रकाश डाला गया कि घातक बल का उपयोग किए बिना स्थिति को “आसानी से संभाला” जा सकता था।
रिपोर्ट में मृतक के अंगुलियों के निशान की कमी भी सामने आई, जिससे पुलिस का यह दावा और भी कमजोर हो गया कि शिंदे ने बंदूक छीनी और जवाबी कार्रवाई में मारे जाने से पहले गोली चलाई।
मामले की पृष्ठभूमि
बदलापुर के एक स्कूल में सफाईकर्मी अक्षय शिंदे को 17 अगस्त को स्कूल के शौचालय में तीन और चार साल की दो नाबालिगों के यौन उत्पीड़न के आरोप में गिरफ्तार किया गया था। घटना को लेकर लोगों में आक्रोश और पुलिस के गलत व्यवहार के आरोपों के बाद उनकी गिरफ्तारी हुई। 23 सितंबर को तलोजा जेल से पूछताछ के लिए ले जाए जाने के दौरान शिंदे की कथित मुठभेड़ में हत्या कर दी गई।
पुलिस के अनुसार, शिंदे ने पुलिस वैन के अंदर से एक हथियार जब्त किया और अधिकारियों पर गोली चलाई, जिसके बाद पुलिस ने जवाबी कार्रवाई की। वरिष्ठ पुलिस निरीक्षक संजय शिंदे ने कथित तौर पर घातक गोलियां चलाईं, जबकि सहायक पुलिस निरीक्षक नीलेश मोरे, दो कांस्टेबल और एक ड्राइवर भी घटना के दौरान मौजूद थे।
न्यायालय की टिप्पणियां
मजिस्ट्रेट की रिपोर्ट ने पुलिस के बचाव को खारिज कर दिया, जिसमें कहा गया कि उनका बल प्रयोग उचित नहीं था और प्रक्रियागत खामियों की ओर इशारा किया। उच्च न्यायालय ने रिपोर्ट पर कार्रवाई करने के लिए सरकार के दायित्व पर जोर दिया और पूछा कि कौन सी जांच संस्था मामले की जिम्मेदारी लेगी।
यह घटनाक्रम ऐसे समय में हुआ है जब पुलिस की जवाबदेही को लेकर जनता की जांच बढ़ रही है, खासकर अत्यधिक बल प्रयोग के आरोपों से जुड़े हाई-प्रोफाइल मामलों में।
